Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 758
________________ ७०५ -८. २९-३०] . शीलप्राभृतम् सुणहाण गद्दहाण य गोपसुमहिलाण दोसदे मोक्खो। जे सोधंति चउत्थं पिच्छिज्जंता जणेहि सहि ॥२९॥ शुनां गर्दभानां च गोपशुमहिलानां दृश्यते मोक्षः। ये साधयन्ति चतुर्थं दर्यमानाः जनैः सर्वैः ॥२९॥ जइ विसयलोलएहिं णाणोहि हविज्ज साहिदो मोक्खो। तो सो सुरतपुत्तो दसपुत्वीओ वि किं गदो परयं ॥३०॥ यदि विषयलोलैः ज्ञानिभिः भवेत् साधितो मोक्षः । तर्हि स सात्यकि पुत्रः दशपूर्विकः किं गतो नरकं ॥३०॥ सुणहाण-सब लोग देखो, क्या कुत्ते, गधे, गाय आदि पशु तथा स्त्रियों को मोक्ष देखने में आता है ? अर्थात् नहीं आता। किन्तु चतुर्थ पुरुषार्थ अर्थात् मोक्षको जो साधन करते हैं उन्हीं को मोक्ष देखा जाता है। भावार्थ-बिना शीलके मोक्ष नहीं होता। यदि शील के बिना भी मोक्ष होता तो कुत्ते, गधे, गाय आदि पशु और स्त्रियों को भी मोक्ष होता, परन्तु नहीं होता । यहाँ काकु द्वारा आचार्य ने दृश्यते क्रिया का प्रयोग किया है इसलिये उसका निषेधपरक अर्थ होता है। अथवा 'चउत्थं' के स्थान पर 'चउक्क' पाठ ठीक जान पड़ता है उसका अर्थ होता है जो क्रोधादि चार कषायों को शोधते हैं-दूर करते हैं अर्थात् कषायों को दूर कर शीलसे वीतराग भाव से सहित होते हैं वे ही मोक्षको प्राप्त करते हैं ॥२९॥ जइ-यदि विषयों के लोभी ज्ञानी मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकते होते तो दशपूर्वो का प्राणी रुद्र नरक क्यों जाता? ___भावार्थ-विषयों के लोभी मनुष्य शील से रहित होते हैं अतः ग्यारह अङ्ग और नौ पूर्व का ज्ञान होने पर भी मोक्ष से वञ्चित रहते हैं । इसके विपरीत शीलवान् मनुष्य अष्ट प्रवचनभातृका के जघन्य ज्ञानसे भी अन्तमुहूर्तवाद केवलज्ञानी होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। शील कोवीतराग भाव की कोई अद्भुत महिमा है ॥३०॥ १. जो। २. सो। ३. रुद्रः। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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