Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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शील प्राभृतम्
वीरं विसालणयणं रत्तुप्पलकोमलस्समप्पायं । तिविहेण पणमिऊणं सीलगुणाणं णिसामेह ॥ १ ॥ वीरं विशालनयनं रक्तोत्पलकोमलसभपादम् । त्रिविधेन प्रणम्य शीलगुणान् निशाम्यामि ॥ १ ॥ सीलस्स य णाणस्स य णत्थि विरोहो बुधेहि णिछिट्टो । raft य सीलेण विणा विसया णाणं विणासंति ॥ २ ॥ शीलस्य च ज्ञानस्य च नास्ति विरोधो बुधैर्नदिष्टः । नवरि च शीलेन विना विषया: ज्ञानं विनाशयन्ति ॥ २ ॥
दुक्खणज्जहि णाणं गाणं णाऊण भावणा दुक्खं । भावियमई व जीवो विसएसु विरज्जए दुक्खं ॥ ३ ॥ दुःखेन ज्ञायते ज्ञानं ज्ञानं ज्ञात्वा भावना दुःखं । भावितमतिश्च जीवो विषयेषु विरज्यति दुःखं ॥ ३ ॥
वीरं विसाल - ( बाह्य में ) जिनके विशाल नेत्र हैं तथा जिनके पाँव लाल कमल के समान कोमल हैं ( अन्तरङ्ग पक्ष में ) जो केवलज्ञानरूपी विशाल नेत्रोंके धारक हैं तथा जिनका कोमल एवं रागद्वेष से रहित वाणी का समूह रागंको दूर करने वाला है उन महावीर भगवान् को मन, वचनकाय से प्रणाम कर शीलके गुणों को अथवा शील तथा गुणोंका कथन करता हूँ ॥ १॥
शीलस्स - विद्वानों ने शीलका और ज्ञानका विरोध नहीं कहा है। किन यह कहा है कि शीलके बिना विषय ज्ञानको नष्ट कर देते हैं ।
भावार्थ - शील और ज्ञान का विरोध नहीं है किन्तु सहभाव है जहाँ शील होता है वहीं ज्ञान अवश्य होता है और शील न हो तो पञ्चेन्द्रियों के विषय ज्ञानको नष्ट कर देते हैं ||२||
दुक्खे -- प्रथम तो ज्ञान ही दुःख से जाना जाता है फिर यदि कोई
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