Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 740
________________ -७. ११-१२] लिंगप्रामृतम् ६७ दसणणाणचरितं तवसंजमणियमणि'च्चकम्मम्मि । पीडयदि बट्टमाणो पाववि लिंगी गरयवासं ॥११॥ दर्शनज्ञानचरित्रेषु तपःसंयमनियमनित्यकर्मणि । पोडयति वर्तमानः प्राप्पोति लिंगी नरकवासं ॥११॥ कंदप्पा इय वट्टइ करमाणो भोयणेसु रसगिद्धि । माई लिंगविवाई तिरिक्खजोणी ण सो समणो ॥१२॥ कंदादिकं वर्तते कुर्वाणः भोजनेषु रसगृद्धि । मायावी लिंगव्यपायी तियंग्योनिः न स श्रमणः॥१२॥ दंसण-जो मुनि वेषी दर्शन, ज्ञान, चारित्र तथा तप संयम नियम और नित्यकार्यों में प्रवृत्त होता हुआ दूसरे जीवों को पीड़ा पहुंचाता है वह नरकवास को प्राप्त होता है। __ भावार्थ-जो पुरुष मुनिपद धारण कर अपनी प्रमाद पूर्ण प्रवृत्ति से दूसरे जीवों को पीड़ा पहुंचाता है वह नरकगामी होता है। अथवा 'पीड़यति' के स्थान पर 'पीड़यते' छाया मानी जावे तो यह अर्थ होता है कि जो पुरुष मुनि पद धारण कर उक्त कार्योंको करता हुआ पीड़ित होता है अर्थात् अरुचि भावसे दुःखी होता है वह नरकगामी होता है । कुछ प्रतियों में 'वट्टमाणो' के स्थान पर 'बद्धमानो' भी पाठ है सो उसका अर्थ अहं कार-वश होता हुआ ऐसा करना चाहिये ॥११॥ . कंदप्याइय-जो पुरुष मुनिवेषी होकर भी कांदी आदि कुत्सित भावनाओं को करता है तथा भोजन में रस सम्बन्धी लोलुपता को धारण करता है वह मायाचारी, मुनिलिङ्ग को नष्ट करने वाला पशु है, मुनि नहीं है। .. भावार्थ-मुनि होकर भी जो कषाय वश काम कथा आदि विकथाएं करते हैं तथा भोजन में अत्यधिक आसक्ति रखता है वह मायाचारी है तथा लिङ्ग को लजाने वाला है ऐसा पुरुष पशु है, मुनि नहीं है ॥१२॥ १.णिय । २. पवमानो म०। ३. ५० जयचन्द्र टीकायां पवियते इति छाया स्वीकृता। ४.धीम। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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