Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-६. ९२] मोक्षप्राभृतम्
६६७४ ईदृग्विघं लिंगं कथंभूतं, न परापेक्षं परापेक्षारहितं शरीरमात्र परिग्रहं । (जो मण्णइ तस्स सम्मत्तं ) ईदृशं लिंगनिर्ग्रन्थवेषं यः पुमान् मन्यते साधु वक्ति तस्य सम्यक्त्वं भवति, यः सग्रन्थलिगेन मोक्षं वक्ति स मिथ्यादृष्टितिव्य इति ।
कुच्छियदेवं धम्म कुच्छिलिगं च वंदए जो दु । लज्जाभयगारवदो मिच्छादिट्ठी हवे सो हु ॥१२॥
कुत्सितदेवं धर्म कुत्सितलिङ्गं च वदन्ते यस्तु ।
लज्जाभयगारवतः मिथ्यादृष्टिर्भवेत् स हु ।।१२।। (कुच्छियदेवं धम्म ) कुत्सितदेवं श्रीमहादेवं ब्रह्माणं नारायणं बुद्धं रविं चन्द्रमसं यक्ष त्रिपुरभैरवीं चेत्यादिकं । कुत्सितधर्म आलंभनकुंडखण्डितपशुचक्रवषट्कारसम्बन्ध शूलपाणि, झंपापातं , वन्हिप्रवेशं, 'भः सह गमनं सूर्यार्घग्रहणस्नानं, सक्रान्तिदानं, नदीसागरादिमज्जनं, गोयोनिस्पर्शनं, तन्मूत्रपानं, शमी, तरुपूजनं, पिप्पलालिंगनं मृत्तिकाविलेपनं, कृष्णसारचर्मवसनं, नक्तं भोजनं धूलीदृषदुच्चयवन्दनं, रत्नपूजनं वाहनार्चनं, भूमिपूजनं, खङ्गपूजनं, पर्वतपूजनं, घृते मुखवीक्षणमित्यादि कुत्सितधर्म ( कुच्छियलिंगं च वंदए जो दु) कुत्सिलिगं नग्नाण्डकं, जटाधारिणं, पंचशिखं, एकवण्डिनं, त्रिदण्डिनं, शिखाधारिणं, सौगतपाशु
है जो परिग्रह सहित वेष से मोक्ष कहता है उसे मिथ्यादृष्टि जानना चाहिये ॥११॥ - गाथार्थ--जो लज्जा भय और गारव से कुत्सित देव, कुत्सित धर्म और कुत्सित लिङ्ग की वन्दना करता है वह मिथ्यादृष्टि होता है ॥१२॥
विशेषार्थ-महादेव, ब्रह्मा, नारायण, बुद्ध, सूर्य, चन्द्रमा, यक्ष तथा त्रिपुर भैरवी इत्यादि को कुत्सित देव कहते हैं । यज्ञकुण्ड में होमे गये पशु • समूह की स्वीकृति से सम्बन्ध रखने वाले शूलपाणि, पर्वत आदि से कूदकर
झंपाघात करना, अग्नि में प्रवेश करना, पतिके साथ गमन करना अर्थात् अग्नि में जलकर सती होना, सूर्य को अर्घ देना तथा ग्रहण के समय स्नान करना, संक्रान्तिके समय दान देना, नदी समुद्र आदिमें स्नान करना, गाय की योनिका स्पर्श करना, उसका मूत्र पीना, शमी वृक्ष की पूजा करना, पीपल का आलिङ्गन करना, मिट्टी का लेप लगाना, काले मृग की चर्मका पहिनना, रात्रिभोजन करना, धूली और पत्थरों के ढेर की वन्दना करना,
१. भर्वा सह गमनं ख० इदमेव साधु ।
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