Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 717
________________ ६६४ षनाभूते [६.९०जरावोषः । गजचर्मत्व ? कण्ठे कालत्वं रुद्रे रुग्दोषः, सूर्ये पादकुष्ठत्वाद्रग्दोषः । दशावतारसंयुक्तत्वात् कृष्णे जन्मदोषः वसुदेवदेवकीनन्दन त्याच्च । त्रयाणामपि मृत्युसद्भावो वेदितव्यः । नरकासुरभयान्नष्टः खलु श्रीमहादेवस्तत्र मयदोषः, ब्रह्मा दंडं घरति, रुद्रः शूलं खण्डपरशु पिनाकं धनुश्चेत्यादिकं धत्ते, विष्णुश्चक्र सुदर्शन कौमोदकी गदां चेत्यादिकं गृहणाति तेन त्रयाणामपि भयसभावो बुधरवबुद्धयते । सृष्टिकर्तृत्वसंहर्तृत्वादिकस्तत्र स्मयो मदश्च निश्चीयते विपश्चिभिः । रुद्रः पार्व तीमढुङ्गे धरति जटामध्ये गंगां चादधाति, ब्रह्मा वशिष्ठस्य पितृत्वादुवंशीवल्ल. भत्वात्, विष्णुः षोडशसहस्रगोपीभजते गोपनाथस्य दुहितरं च, सूर्यो रण्णादेवीं चन्द्रो रोहिणी च भुक्ते तेनैते रागवन्तोऽपि ज्ञातव्याः । ब्रह्मा गजासुर द्वेष्टि, रुद्र विशेषार्थ-हिंसा रहित धर्मकी श्रद्धा करना सम्यक्त्व है । हिंसा.. रहित धर्म जैनधर्म है। जिस धर्म में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, मनुष्य तथा अश्व आदि पशुओं का वध किया जाता है वह अधर्म है । अठारह दोषों से रहित देवका श्रद्धान करना सो सम्यक्त्व है। अठारह दोषों से रहित देव यदि कोई है तो वीतराग सर्वज्ञ देव ही हैं उन्हींका श्रद्धान करना सम्यक्त्व है। रुद्र ने शृगाल श्रेष्ठी के पुत्र का भक्षण किया था इसलिये उनमें क्षुधा दोष तथा हिंसा का दोष है । ब्रह्मा कमण्डल ग्रहण करते थे इसलिये उनमें प्यासका दोष तथा जीर्ण शरीर होने से जराका दोष था रुद्र के गज चर्मत्व था अर्थात् उनके शरीर का चमं फूलंकर मोटा होगया था और कण्ठ में कालापन था इसलिये रोग नामका दोष था। सूर्य के पैर में कुष्ठ था इसलिये रोग नामका दोष था। दश अवतारों से सहित होने अथवा वसुदेव और देवकी के पुत्र होनेके कारण कृष्ण में जन्म नामका दोष था मृत्यु नामका दोष ब्रह्मा, रुद्र और कृष्ण तीनोंके जानना चाहिये। नरकासुरके भयसे महादेव नष्ट हुए थे इसलिये उनके भय था। ब्रह्मा दण्ड धारण करते हैं रुद्र शूल खण्ड परशु और पिनाक नामके धनुष को धारण करते हैं, तथा विष्णु सुदर्शन चक्र तथा कौमोदकी नामकी गदा इत्यादि शस्त्रों को धारण करते हैं इसलिये तीनों के भय का सद्भाव विद्वान् स्वतः समझते हैं । ब्रह्मा को सृष्टिकर्तृत्व का तथा रुद्रको संहर्तत्व आदिका गर्व है इसलिये विद्वान् उनके मद नामक दोष का निश्चय करते हैं। रुद्र पार्वती को अर्धाङ्ग में धारण किये हैं तथा गङ्गा को जटाओं में धारण करते हैं ब्रह्मा वसिष्ठ के पिता हैं तथा उर्वशी के पति हैं । विष्णु सोलह हजार गोपियोंका तथा गोपनाप को पुत्री राधा का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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