Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 716
________________ -६. ९० ] मोक्षप्राभृतम् ६६३ ( ते घण्णा सुकयत्था ) ते पुरुषा धन्याः पुण्यवन्तः, ते पुरुषाः सुकृतार्थाः सुष्ठु अतिशयेन कृतार्थाः कृतकृत्याः साधितचतुः पुरुषार्थाः । ( ते सूरा ते वि पंडिया मणुया ) ते पुरुषाः शूराः सुभटाः पापकर्म शत्रु विध्वंसकत्वात्, ते पुरुषाः पण्डिताः विद्वांसस्तार्किका अपि मनुजा मानवा अपि सन्तो देवा इत्यर्थं । ( सम्मत्त सिद्धियरं सिवणे विण मइलियं जेहि ) सम्यक्त्वं सम्यग्दर्शनं, स्वप्नेऽपि निद्रायां, अपिशब्दाज्जाग्रदवस्थायामपिः, यैः पुरुषः, सम्यक्त्वं सम्यग्दर्शनरत्नं, न मलिनीकृतं निरतिचारं प्रतिपालितं । कथंभूतं सम्यक्त्वं सिद्धियरं - सिद्धिकरं आत्मोपलब्धिलक्षणमोक्षकारकमिति । तं सम्मत्त सिंहवदितं जहा - तत्सम्यक्त्व कीदृशं भवति तद्यथाहिंसारहिए धम्मे अट्ठारहदोसवज्जिए देवे । , निग्गंथे पावयणे सद्दहणं होइ सम्मत्तं ॥ ९० ॥ हिंसारहिते धर्मे अष्टादश दोषवर्जिते देवे । C निर्ग्रन्थे प्रावचने श्रद्धानं भवति सम्यक्त्वम् ||१०|| ( हिंसारहिए धम्मे ) हिंसारहिते धर्मे श्रद्धानं सम्यक्त्वं भवतीति सम्बन्धः, हिंसारहितो धर्मो जैनधर्मः यत्र धर्मे ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्राश्वपश्वादिको जीवो वष्यते सोऽधमं इति तत्वार्थ: । ( अट्ठारह दोसवज्जिए देवे ) अष्टादशदोषवर्जिते देवे श्रद्धानमिति सम्बन्धः । रुद्रः किल शृगालश्रेष्ठिनः पुत्रं भक्षितवान् तत्र क्षुधादोषः हिंसादोषश्च । ब्रह्मणः कमण्डलुग्रहणात् पिपासादोषः, जीर्णशरीरत्वात्तस्य Jain Education International और वे ही पण्डित हैं जिन्होंने सिद्धि को प्राप्त कराने वाले सम्यक्त्व को स्वप्न में भी मलिन नहीं किया है || ८९|| विशेषार्थ - यह सम्यग्दर्शन ही सिद्धि अर्थात् स्वात्मीय लब्धि रूप मोक्षको प्राप्त कराने वाला है इसकी प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है । इसे पाकर जिन्होंने जागृत अवस्था की तो बात ही जुदी है स्वप्न में भी कभी मलिन नहीं किया है अतिचारों से दूषित नहीं किया है वे ही पुरुष धन्य हैंपुण्यवान् हैं, वे ही अतिशय कृतकृत्य हैं - चारों पुरुषार्थों को साधने वाले हैं, वे ही शूरवीर हैं - पाप कर्म रूपी शत्रुओं का विध्वंस करने के लिये सुभट हैं और वे ही पण्डित हैं महाविद्वान् तार्किक हैं अथवा मनुष्य होते हुए भी देव हैं ।।८९।। W वह सम्यग्दर्शन कैसा होता है ? इसका वर्णन करते हैंगावार्थ - हिंसा रहित धर्म, अठारह दोषों से रहित देव और निर्ग्रन्थ गुरु में जो श्रद्धा है वह सम्यग्दर्शन है ॥९०॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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