Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 702
________________ -६. ७४] मोक्षप्रामृतम् ध्यानयोगस्य अष्टाङ्गयोगमध्ये सप्तमो योगो ध्यानयोगस्तस्य कालोऽवसरो न वर्तते । कथं ? हि-स्फुटं । के ते अष्टाङ्गयोगाः यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाभ्यानसमाधयः । इति । सम्मत्तणाणरहिओ अभव्वजीवो हु मोक्खपरिमुक्को । संसारसुहे सुरदो ण हु कालो भणइ माणस्स ॥७४॥ सम्यक्त्वज्ञानरहितः अभव्यजीवो हि मोक्षपरिमुक्तः । संसारसुखे सुरतः न हि कालो भणति ध्यानस्य ।।७४॥ (सम्मत्तणाणरहिओ ) सम्यक्त्वरहितो मिथ्यादृष्टिः, ज्ञानरहितोऽज्ञानो मूढजीवो बहिरात्मा । ( अभव्यजीवो हु मोक्खपरिमुक्को ) अभव्यजीवो रत्नत्रयस्यायोग्यो लौकादिको मोक्षपरिमुक्तः तस्य कदाचिदपि कर्मयो न भविष्यति स न सेत्स्यति कंकटूकमुद्गवत् । ( संसारसुहे सुरदो ) संसारसुखे वनितायोनिमथनसुखे, सुरतः सुष्ठु अतिशयेन रतः तत्परः । ( ण हू कालो भणइ झाणस्स ) एव दोषदुष्टो भणति बूते, किं भणति ? ध्यानस्य कालो न भवति । कथं ? हु–सुटं।.. से कलुषित होनेके कारण शुद्धभाव से भ्रष्ट हैं-आत्मध्यान से विमुख हैं। ऐसे जीव अपनी पुरुषार्थ होनता को छिपाने के लिये कहते हैं कि यह ध्यान के योग्य समय नहीं है ।।७४।। आगे और भी इसी बातको स्पष्ट करते हैं गाथार्थ-जो सम्यक्त्व तथा सम्यग्ज्ञान से रहित है, जिसे कभी मोक्ष होना नहीं है, तथा जो संसार सम्बन्धी सुख में अत्यन्त रत है ऐसा अभव्य जोव हो कहता है कि यह ध्यान का समय नहीं है अर्थात् इस समय ध्यान नहीं हो सकता ॥४॥ .. विशेषार्थ-मोक्ष की योग्यता से रहित, संसार सुख में आसक्त मिथ्यादृष्टि एवं मिथ्याज्ञानी अभव्य जीव ही ऐसा कहते हैं कि यह ध्यान का काल नहीं है-इस समय ध्यान नहीं हो सकता परन्तु सम्यग्दृष्टि, सम्यग्ज्ञानी, मोक्ष प्राप्ति को योग्यता रखने वाले और संसार सुख से विरक्त रहने वाले पुरुष ऐसा नहीं कहते कि यह ध्यान का काल नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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