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-१.१५४] भावप्राभृतम्
५५१ "चित्र चेम अस्मदीयस्त्यानस्थाणुमूकतूष्णीकदवैकमृदुकसेवानखनीडनिहितव्याहृतकुतूहलस्थूलव्याकुलेषु वा" इत्यनेन प्राकृतव्याकरणसूत्रेण चिम इत्यस्य वा द्विस्वं । चित्र इति कोऽर्थः “अवधारणे णइ च्च चित्र चेाः।" अन्यच्च
ते च्चिा धण्णा ते चिय साउरिसा ते जियंति जियलोए ।
वोद्दहदहम्मि पडिया तरंति जे च्चिय लं लोए ॥ १ ॥ बोद्दह इति कोऽर्थो यौवनम् । ते धोरवीरपुरिसा खमदमखग्गेण विप्फुरतेण ।
दुज्जयपबलबलुद्धर कसायभडणिज्जिया जेहिं ॥१५४॥ - ते धीरवीरपुरुषाः क्षमादमखड्गेन विस्फुरताः। : । दुर्जयप्रबलोद्धरकषायभटा निजिता यैः ॥१५४॥
(ते धोरवीरपुरिसा) ते पुरुषा धोरा अनिवर्तकाः संयमसंग्रामात् कर्मशत्रूणां पातमकृत्वा न पश्चाद्व्याघुटंति, वीरा विशिष्टां केवलज्ञानसाम्राज्यलक्ष्मी रान्ति सीकुर्वन्तीति वीराः। ( खमदमसग्गेण विप्फुरतेण ) क्षमा प्रकृष्टप्रशमः, दमो चितेन्द्रियत्वं क्षमयोपलक्षितो दमः क्षमदमः स एव खङ्गः कौलेयः करवालोऽसिमस्त्रिशः पातिकर्मशत्रसंघातघातकत्वात् तेन क्षमादमखड्गेन । किं कुर्वता ? विक्करता बप्रतिहतव्या पारतया चमत्कुर्वता । ( दुज्जयपबलबलुबर) दुःखेन
। 'गाथा में "च्चिय' शब्द दिया है उसे चिज चेञ्ज आदि प्राकृत व्याकरण के सूत्र से द्वित्व हो गया है चिज का अर्थ अवधारण है। और भी कहा है
तेन्धिय-संसार में वे ही धन्य हैं, वे ही सत्पुरुष हैं और वे ही जीवित है जो यौवन रूपी गहरे ह्रद में गिरकर भी लीलासे उसे पार कर
भावार्य-वे धीर वीर पुरुष हैं जिन्होंने क्षमा और जितेन्द्रियता रूपी बमकती तलवार से दुर्जेय तथा प्रचुर बलसे उत्कट कषाय रूपी योद्धाओं को जीत लिया है ।।१५४॥
विशेषा-धीर वे हैं जो संयम रूपी संग्राम से कर्मरूपी शत्रुओं का चत किये बिना पीछे नहीं लौटते और वीर वे हैं जो वि-विशिष्ट, ईमाल-बान-रूपी लक्ष्मी को, र-स्वीकृत करते हैं। लोकोत्तर प्रशमभावकपमा कहते हैं तथा इन्द्रियों को जीतना दम कहलाता है। कुन्दकुन्द स्वामी कहते हैं कि इस संसारमें धीर वीर पुरुष वे ही हैं जिन्होंने क्षमा
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