Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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मोक्षप्राभृतम् तरङ्गभामिन्यां सुप्रभा प्रभावती चेति द्वे पतिवरे बभवतुः । एता अष्टावपि दिव्याभरणभूषिता दिव्याम्बरधरा अमरकुमारिका इव कंचुकिपरिवरितास्तिष्ठन्ति । एकदा कलासोपरि मानससरसि जलक्रीडार्थमागताः पीनोन्नतस्तनशोभिताः स्नानं कुर्वतीस्ता रुद्रो ददर्श । मदनबाणैर्वक्षसि बिद्धः । क्षुभितो रुद्रो व्यामोहं प्राप । तेनासन्नस्थितेनकामबाणजर्जरितहृदयेन चिन्तित उपायः । विद्यया सरस्तटस्थितानि वस्त्राभरणानि हारयति स्म । ता अनुपमाः स्नानं कृत्वा तटमागत्य वस्त्राभरणानि पश्यन्ति स्म । व्याकुलितमनोभिस्ताभिर्मुनिसमीपं गत्वा स मुनिरूचे । स्वामिन् ! न ज्ञायते देवानामपि प्रियाणि अस्माकं वस्त्राभरणानि केनचिद्गृहीतानि । भगवन् ! त्वं ज्ञानवान् जानासि निश्चितं कथय । रुद्र उवाच । जानाम्येव, यदि मामिच्छतं यूयं तदा दर्शयामि । एतद्दुत्वा विस्मित्य नवयौवना विद्याधरकुमार्य ऊचुः । मुने ! वयं स्वच्छन्दचारिण्यो न वर्तामहे । अस्मन्मातरपितरौ जानीतः । स्वछन्दचारिणीनां विद्यामाहात्म्यं कुतः । ततो वस्त्राभरणानि दत्वा शिपिविष्टः प्राह । निजमातरपितृगणं पृष्ट्वा मम उत्तरं दत्त यूयं । ताभिर्गृह गत्वा पितुरले वार्ता कृता। पित्रा तु एकः कंचुकी संदेशहरो हरं प्रेषितः । स
बसा कर सपरिवार निर्भय रहने लगा। उस देवदारु की चार महा देवियाँ थी १ योजन गन्धा, २ कनका, ३ तरङ्ग वेगा और ४ तरङ्ग भामिनी । चारों ही अत्यन्त सुन्दर शरीर की धारक थीं। योजन गन्धा के गन्धिका
और गन्धमालिनी नामकी दो अत्यन्त विनीत पुत्रियां उत्पन्न हुई। कनका के कनक चित्रा और कनक माला ये दो पुत्रियाँ हुईं। तरङ्ग वेगा के तरङ्ग सेना और तरङ्गवती ये दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई और तरङ्ग भामिनी के सुप्रभा तथा प्रभावती ये दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई। ये आठों ही कन्याएं दिव्य आभूषणों से सुशोभित दिव्य वस्त्रों को धारण करने वाली देव कन्याओं के समान कञ्चुकियों से घिरी रहती थीं। एक दिन वे सब कन्याएं कैलास पर्वत पर मानस सरोवर में जल क्रीड़ा करने के लिये आई । स्थूल तथा उठे हुए स्तनों से सुशोभित उन कन्याओं को स्नान करती हुई रुद्र ने देखा। देखते ही वह कामके बाणों से हृदय में घायल हो गया । क्षुभित रुद्र व्यामोह को प्राप्त हो गया। समीप में स्थित तथा काम के बाणों से जर्जरित हृदय वाले रुद्र ने उपाय सोच लिया। उसने विद्या के द्वारा सरोवर के तट पर रखे हुए उन कन्याओं के वस्त्राभूषण उठवा लिये । वे अनुपम कन्याएं स्नान कर जब तट पर आई तब उन्होंने अपने वस्त्राभूषण नहीं देखे । जिनके चित्त व्याकुल हो रहे थे ऐसी उन - लड़कियों ने मुनि के पास जाकर कहा कि हे स्वामिन् ! देवोंको भी प्रिय
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