________________
६१४
षट्प्राभृते
[ ६. ४६
गत्वा मुनिमुवाच । स्वामिन् ! अस्मत्स्वाम्स्येवं भणति । यदि मेघनिबद्ध पत्तनं गत्वा मेघनृपं तथा मेघनादं च दायिनं निर्धाट्य 'त्रिकहर्षदायि त्रिपुरं पुरं प्रवेशयसि मां तदा जनमनोमोहनकारिणीर्मम सुता अष्टा अपि ददामि । कर्पादना ओमिति भणिते कंचुकिना चागत्य राज्ञे तथा कथिते खचराधिपो हर्षं चकार । सुहृत्स्वजन वर्गेण सर्वेण तत्र गत्वा सर्वं स्वमन्दिरमानिनाय । तत्रोपवेश्येश्य रमादितो वृत्तान्तं जगाद यथा दायिना राज्यमपहृतं । ईशान उवाच । राजन् ! यत्त्वं भस तदहं साधयामि किमेकेन त्रिपुराधिपेन ? त्रिजगदपि संहरामि । तदनन्तरं सरोषो देवदारुर्भयरहितो नाना छत्रध्वज चामरसैन्यसहितः शंकरं तीत्वा तत्र गतः । पुरं वेष्टितवान् । विद्युज्जि व्हस्तु निर्गतः, चन्द्रशेखरस्तेन सह त्रैलोक्यचित्तचम
लगने वाले हमारे वस्त्राभूषण किसी ने ले लिये हैं पर जान नहीं पड़ता किसने लिये हैं? आप ज्ञानवान् हैं अतः निश्चित जानते हैं । बतलाइये,' किसने लिये हैं ? रुद्र बोला, जानता ही हूँ यदि तुम सब मुझे चाहो तो मैं दिखला दूं। यह सुनकर आश्चर्य में पड़ी नवयौवनवती विद्याधर कुमारियाँ बोलीं- मुने ! हम स्वच्छन्दचारिणी नहीं हैं हमारे माता पिता जानते हैं, स्वच्छन्दचारिणी स्त्रियों को विद्या का माहात्म्य कैसे प्राप्त हो सकता है ? तब उनके वस्त्राभरण देकर रुद्र ने कहाअच्छा आप लोग अपने माता पिता से तथा सपरिवार से पूछकर उत्तर देओ ।
उन कन्याओं ने घर जाकर पिता के आगे सब समाचार कहा । पिता ने एक कञ्चुकी को दूत बनाकर रुद्र के पास भेजा । कञ्चुकी ने जाकर मुनि से कहा - स्वामिन्! हमारे स्वामी ऐसा कहते हैं - यदि आप मेघ निबद्ध नगर जाकर मेघनृप तथा मेघनादको जो कि हमारी दासी हैंसम्पत्ति पर अधिकार किये बैठी हैं निकालकर मानसिक, वाचनिक और शारीरिक के भेद से तीनों प्रकार के हर्ष को देनेवाले त्रिपुर नगर में मेरा प्रवेश करा दें तो मनुष्यों के मनको मोहित करने वाली अपनी आठों पुत्रियाँ आपको दे दूँ । रुद्र ने 'ओम्' कह कर स्वीकृति दे दी । कचुकी ने आकर सब समाचार कहा जिससे विद्याधर राजा हर्ष को प्राप्त हुआ। वह समस्त मित्र तथा परिवार के लोगों के साथ जाकर रुद्र को अपने घर लिवा लाया । वहाँ बैठा कर उसने दासोने जिस प्रकार राज्य अपहृत
१. त्रिकहर्ष दायिनि क० । २. सुहृप्युजन म० ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org