Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-६. ६१] मोक्षप्राभृतम्
'होइ वणिज्जु ण पोट्टलिहिं उववासें गउ धम्मु ।। एउ अहाणउ सो चवइ जसु कउ भारत कम्मु ॥ १॥ पोट्टलियहि मणिमोति यहं धणु कित्तइवि ण जाइ। वोरिहि भरिय वलद्दडइं तं णाहि जोक्खाइ ॥१॥
आत्मशुद्धिरियं प्रोक्ता तपसैव विचक्षणैः । . किमग्निना विना शुद्धिरस्ति कांचनशोधने ॥ १ ॥ बाहरलिंगेण जुदो अन्भंतलिंगरहिदपरियम्मो। सो सगचरित्तभट्ठो मोक्खपहविणासगो साहू ॥६१॥ बहिलिगेन युतो अभ्यंतलिंगरहितपरिकर्मा।
स स्वकचरित्रभ्रष्टः मोक्षपथविनाशकः साधुः ॥ ६१ ॥ (बाहिरलिंगेण जुदो ) बहिलिगेन युतो नग्नमुद्रासहितः । ( अब्भंतरलिंगरहिदपरियम्मो) अभ्यन्तरलिंगरहितपरिकर्मा आत्मस्वरूपभावनारहितं परिकर्म अङ्गसंस्कारो यस्य सोऽभ्यन्तरलिंगरहितपरिकर्मा। (सो सगचरित्तभट्ठो) स
होईवणिज्जु-पोटली (कपड़े की छोटी सी गठरी) से वाणिज्य नहीं हो सकता और उपवास करने से धर्म नहीं हो सकता ऐसा अहाना (लोकोक्ति) वही कहता है जिसके कर्म भारी है।
पोलियहि-मणि और मोतियों की पोटली (गठरी) का धन कितना है कहा नहीं जाता। वह धन बोरों से भरे हुए बैलों से नहीं जोखा जा सकता नहीं तोला जा सकता क्योंकि अतुल है। ___आत्मशुद्धि--यह आत्मशुद्धि तपसे ही हो सकती है ऐसा विद्वानों ने कहा है । क्या सुवर्ण के शोधने में अग्नि के बिना शुद्धि हो सकती है ? अर्थात् नहीं। . .. गावार्थ-जो साधु बाह्य लिङ्ग से तो सहित है परन्तु जिसके शरीर
का संस्कार (प्रवर्तन) आभ्यन्तर लिङ्ग से रहित है वह आत्म चारित्र से भ्रष्ट है तथा मोक्षमार्ग का नाश करने वाला है ॥६१॥ .
विशेषार्थ-बाह्य लिङ्ग अर्थात् नग्न मुद्रा से सहित होनेपर भी जिसके शरीर की प्रवृत्ति आभ्यन्तर लिङ्ग से रहित है अर्थात् आभ्यन्तर स्वरूप की भावना से शून्य है वह साधु आत्म चारित्र से भ्रष्ट है तथा मोक्ष
...१. साक्य पम्म दोहा १०९।।
२. साक्य पम्म दोहा ११० ।
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