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मोक्षप्राभृतम्
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सा तेन भुक्ता । पुनरालोचनां निन्दां गर्हणं च कृत्वा श्रमणधर्मे स्थितः । सा सगर्भा शास्त्यायया ज्ञात्वा चेलन्या: समर्पिता । तत्र तिष्ठन्ती सा पुत्रमसूत । स पुत्रोऽभयकुमारेण स्वयंभू गुहायां क्षिप्तः । तत्र रात्री स्वप्नदर्शनाच्चेलनया ख आनायितः । 'दर्शनोड्डाहं शमयित्वा स्वयंभूनामा कृतः । ज्येष्ठा तु निःशल्या भूत्वा गता । आर्यायाः पार्श्वे संयमनियमान् पालयन्ती स्थिता । स्वयंभूस्तु वर्धमानः शिशूनां चपेटादिताडनेन सन्तापं करोति । तद्देव्या चेलनया अपरमपि कालेनायुक्त दृष्ट्वा स्वयंभूरुक्तः । खलो जारजातो निर्लज्जः किं केनापि स्वभावं मुंचति । कुकृत्वा दुर्वचनेन शूलभिन्न इव ताडितः । पुनः स प्रणामं कृत्वा पृष्टवान्मातः ! किमेतदुक्तं ? चेलनया तु न किमपि रक्षितं यथोक्तमुवाच । निजोत्पत्तिव्यतिकरं ज्ञात्वा उत्तरगोकर्णपर्वतं गत्वा सात्यकिमुनि नत्वा वैराग्येण दिगम्बरो भूत्वा उत्तरगोकर्णपर्वते स्थितः । गुरुशिक्षया मनो रुद्ध्वा स एकादशाङ्गानि शिक्षितः । तत्र रोहिणीप्रभृतयः पंचशतविद्या महातिशया आगताः सिद्धाः । अपरा
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वह कपड़ा निचोड़ने लगी । उसी समय सात्यकि मुनि की दृष्टि उस पर पड़ी। देखते हो मुनिके कामोद्रेक हो गया जिससे उन्होंने उसका उपभोग कर लिया | मुनि तो आलोचना निन्दा तथा गर्हा कर मुनि धर्म में स्थिर हो गये परन्तु ज्येष्ठा आर्या गर्भावती हो गई । जब शान्ति नामक प्रधान आर्याको पर्ता चला तो उसने उसे चेलनाको सौंप दिया । चेलना के पास रहते हुए उसने पुत्र उत्पन्न किया। उस पुत्रको अभय कुमारने स्वयंभू गुफा में डाल दिया । रात्रिके समय चेलना को स्वप्न दिखा जिससे उसने उसे गुफा से बुलवा लिया तथा दर्शन सम्बन्धी अनिष्ट का शमन कर उसका स्वयंभू नाम रखा । ज्येष्ठा निःशल्य होकर चली गई तथा आर्यिका के पास संयम सम्बन्धी नियमों का पालन करती हुई रहने लगी ।
स्वयंभू ज्यों ज्यों बड़ा होने लगा त्यों त्यों चाँटा आदि की ताड़ना से अन्य बच्चों को संताप पहुँचाने लगा। किसी समय रानी चेलना ने उसके और भी अनुचित कार्य को देखकर स्वयंभू से कहा- जो दुष्ट, जार जात तथा निर्लज्ज होता है वह क्या किसी भी कारण स्वभाव को छोड़ता है। चलना ने भौंह टेढ़ी कर उक्त दुर्वचन कहे थे इसलिये स्वयंभू इतना पीड़ित हुआ मानों किसी ने शूल से ही विदीर्ण कर दिया हो । उसने फिर प्रणाम कर पूछा- माता जी ! आपने यह क्या कहा है ? चेलना ने कुछ भी नहीं रख छोड़ा सब ज्योंका त्यों कह दिया । अपनी उत्पत्ति का समा
१. दर्शनोडाहं क० ।
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