Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
-६. १०] मोक्षप्राभृतम्
५७३ अविदितार्थ यथावत्स्वरूपपरिज्ञानरहितार्थ यथा भवत्येवं वर्तमान आत्मा । (अप्पाणं) इति जीवः आत्मानं जानीते तच्च देहादिकं वस्तु आत्मा न भवति । तेन विपरीताभिनिवेशेन (सुयदाराईविसए) सुतदारादिविषये पुत्रकलत्रादिषु । ( मणुयाणं वड्ढए मोही ) मनुजानां मानवानां वर्धते मोहः-स्नेहेनाज्ञानमूलं मोहो वैचित्त्यं वृद्धि याति, मोहेन परिणतो जीवो बहिरात्मा पुनः कर्माण्यष्टौ बध्नाति । उक्तं च
'जीवकृतं परिणाम निमित्तमात्रं प्रपद्य पुनरन्ये ।
स्वयमेव परिणमन्तेऽत्र पुद्गला कर्मभावेन ॥ १॥ विशेषार्थ-'स्वम् इति परस्मिन् अध्यवसायः स्वपराध्यवसायः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार 'यह आत्मा है' इस प्रकार पर पदार्थों में जो निश्चय होता है वह स्वपराध्यवसाय कहलाता है । 'अविदितोऽर्थो यस्मिन् कर्मणि तत् अविदितार्थ यथावत् स्वरूप परिज्ञानरहितार्थं यथास्यात् तथा' इस समास के अनुसार अविदितार्थ क्रिया-विशेषण है। 'जीवः' इस कर्तृ पदको ओर 'जानीते' इस क्रिया पद की ऊपर से योजना करनी चाहिये । इस तरह गाथा का अर्थ होता है कि यह जीव पर पदार्थ में आत्म-बुद्धि होनेके कारण अज्ञानी होता हुआ शरीरादि पर वस्तुओंका आत्मा जानता है। इसी विपरीताभि-निवेश-मिथ्या अभिप्रायसे मनुष्यों का पुत्र तथा स्त्री आदि में मोह बढ़ता है। मोह रूप परिणत हुआ जीव बहिरात्मा कहलाता है तथा बहिरात्मा होकर यह जीव आठ कर्म बांधता है।
जैसा कि कहा है
जीवकृत-जीवके द्वारा किये हुए रागादि परिणाम को निमित्त मात्र प्राप्त करके जीवसे भिन्न पुद्गल द्रव्य स्वयं ही कर्म-रूप परिणत होजाते है। यहाँ पुद्गल द्रव्य स्वयं कर्म रूप परिणत होजाते हैं, इससे आचार्य ने यह भाव सूचित किया है कि कर्मका उपादानकारण पुद्गल द्रव्य है क्योंकि वह स्वयं कर्म रूप परिणत होता है परन्तु पुद्गल द्रव्यका कर्म रूप परिणमन अनिमित्तक न होकर जीवके रागादि परिणाम-निमित्तक है। एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका उपादान कारण नहीं हो सकता क्योंकि एक अव्यका दूसरे द्रव्य में अत्यन्ताभाव होता है परन्तु निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध दो भिन्न द्रव्यों में भी होता है इसीलिये पुरुषार्थसिद्धयुपायके इस श्लोकमें श्री अमृतचन्द्र स्वामी ने पुद्गल द्रव्यके कर्म रूप परिणमन में जीवके रागादि भावोंको निमित्त कारण माना है और 'परिणममानस्य
या सिधुपाये। ...... ..........
.:.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org