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पट्नाभूते
[५. १२(आदसहावे सुरओ) आत्मस्वभावे टंकोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभावचिच्चमत्कारलक्षणनिजशुद्धबुद्धकपरिणामे जीवतत्वे सुष्ठु-अतिशयेन रत एकलोलीभावः । ( जोई सो लहइ णिव्वाणं) य एवंविधो योगी शुद्धोपयोगरतो मुनिः स लभते निर्वाणं, सर्वकर्मक्षयलक्षणोपलक्षितं मोक्षं लभते प्राप्नोति । अथवा जोई सो योगो ध्यानं विद्यते यस्य स योगी योगिनामीशो यागीश इत्यनेन गृहस्थस्य स्त्रियाः परलिंगे च मुक्तिनं भवतीति सूत्रितं ज्ञातव्यं । उक्तं च
साम्यं स्वास्थ्यं समाधिश्च योगश्चिन्तानिरोधनम् ।
शुद्धोपयोग इत्येते भवन्त्येकार्थवाचकाः ॥१॥ कथं गृहस्थस्य मुक्तिनं भवतीति चेत् ?
खणनी पेषणी चुल्ली उदकुम्भः प्रमार्जनी । पंच सूना गृहस्थस्य तेन मोक्षं न गच्छति ॥ १॥
और जो टोत्कीर्ण एक-मात्र ज्ञायकस्वभाव, चैतन्य-चमत्कार लक्षण से युक्त, निज शुद्ध-बुद्धक परिणाम जीव तत्व में अतिशय से लीन है वह योगी शुद्धोपयोग में रत होता हुआ सर्व कर्मक्षय लक्षणसे सहित मोक्षको प्राप्त होता है। अथवा 'योगो ध्यानं विद्यते यस्य स योगी योगिनामीशो योगीशः' इस समास के अनुसार ध्यानी मुनियों का स्वामी-उत्कृष्ट मुनि ही मोक्षको प्राप्त होता है, ऐसा अर्थ लेना चाहिये। ऐसा अर्थ करनेसे गृहस्थ के स्त्री के तथा दिगम्बर मुद्रा के सिवाय अन्यवेष के धारक साधु के मोक्ष नहीं होता है यह भाव सूचित होता है । कहा भी है
साम्यं-साम्य, स्वास्थ्य, समाधि, योग, चिन्ता-निरोध और शुद्धोपयोग ये सब एकाथं के वाचक हैं।
प्रश्न-गृहस्थ के मुक्ति क्यों नहीं होती है ?
उत्तर-गृहस्थ के कूटना, पीसना, चूला सुलगाना, पानी के घट भरना और बुहारी लगाना ये पाँच हिंसा के कार्य होते हैं अतः वह मोक्ष को प्राप्त नहीं होता।
इसो प्रकार स्त्रियों की भी मुक्ति नहीं होती क्योंकि उनके महाव्रतका अभाव है।
प्रश्न-स्त्रियों के महाव्रत का अभाव क्यों है ?
उत्तर-क्योंकि उनकी कोखरियों में, स्तनों के बीच में, नाभि में और योनि में जोवों की उत्पत्ति तथा विनाश रूप हिंसा होती रहती है, उनके निःशङ्कपनेका अभाव है तथा वस्त्र रूप परिग्रह का त्याग भी नहीं
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