Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभृते - [६. २१-२२जो जाइ जोयणसयं दियहेणेक्केण लेवि गुरुभारं । सो किं कोसद्धं पि हु ण सक्कए जाहु भुवणयले ॥२१॥
यो याति योजनशतं दिनेनैकेन लात्वा गुरुभारम् ।
स किं क्रोशाधमपि हु न शक्यते यातु भुवनतले ॥२१॥ (जो जाइ जोयणसयं ) यो याति यः पुमान् याति गच्छति, किं ? योजनशतं सहस्रयोजनदशमभागं । ( दियहेणेककेण लेवि गुरुभारं ) दिवसेनकेन लेवि लात्वा गृहीत्वा, के ? गुरुभारं महाभारं । ( सो किं कोसद्ध पि हु ) स पुमान् ( किं) क्रोशार्धमपिह हु स्फुटं । ( ण सक्कए जाहु भुवणयले ) न शक्नोति न समर्थो भवति यातु भुवनतले पृथिवीमण्डले अपि तु गज्यूतिचतुर्थमंशं यातु शक्नोत्येव ।
जो कोडिए ण जिप्पइ सुहडो संगामएहिं सव्वेहि । सो कि जिप्पइ इक्कि परेण संगामए सुहडो ॥२२॥
यः कोटया न जीयते सुभटः संग्रामिकैः सर्वैः ।
स किं जीयते एकेन नरेण संग्रामे सुभटः ।।२२।। ( जो कोडिए ण जिप्पइ ) यः सुभटः सुभटानो कोट्या न जीयते न पराभूयते । ( सुहडो संगामएहि सवेहि ) सुभटः संग्रामकैः सर्वैरपि । ( सो किं जिप्पइ
आगे इसी बातको दृष्टान्त से सिद्ध करते हैं-- .
गाथार्थ-जो मनुष्य बहुत भारी भार लेकर एक दिन में सौ योजन जाता है वह क्या पृथिवी तल पर आधा कोस भी नहीं जा सकता? अवश्य जा सकता है ॥२१॥
विशेषार्थ-जिस जिनधर्म के द्वारा निर्वाण प्राप्त हो सकता है उस धर्म से स्वर्ग का प्राप्त होना दुष्कर नहीं है, इसी बातको यहाँ दृष्टान्त द्वारा समझाया गया है कि जो पुरुष एक दिन में बहुत भारी बोझा लेकर सौ योजन चल सकता है उसे आधा कोस चलना क्या कठिन हो सकता है ? अर्थात् नहीं । यथार्थमें सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप रत्नत्रय मोक्षके ही कारण हैं परन्तु इनके साथ रहने वाला जो रागांश है वह देवायु के बन्धका कारण है इस रागांशको प्रबलतासे कितने हो जोव देवायुका बन्धकर स्वर्ग भी जाते हैं ॥२१॥
गाथार्थ--जो सुभट संग्राम में करोड़ों की संख्या में विद्यमान सब योद्धाओं द्वारा मिलकर भी नहीं जोता जाता वह क्या एक योद्धा के द्वारा जीता जा सकता है ? अर्थात् नहीं जीता जा सकता ॥२२॥
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