Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पप्रामृते
[५.१४९- . लोक्यन्ते न दृश्यन्ते यस्मिन् संसारे सर्वतोऽनन्तानन्तजीवादयः पदार्थाः सोऽलोकः' . लोकश्चालोकश्च लोकालोकस्तं लोकालोकं प्रकाशयति जानाति पश्यति चेत्यर्थः । णाणी सिव परमेट्ठी सव्वण्हू विण्हु चइमुहो बुद्धो। अप्पो वि य परमप्पो कम्मविमुक्को य होइ फुडं ॥१४९॥ ज्ञानी शिवः परमेष्ठी सर्वज्ञो विष्णुः चतुर्मुखो बुद्धः । । आत्मापि च परमात्मा कर्मविमुक्तश्च भवति स्फुटम् ।।१४९।। . . .
सम्यग्दर्शनप्रभावेणायं संसारी जीवः सिद्धो भवतीति न केवलं भवतीत्यपि शब्दस्यार्थः। स सिद्धः कथंभूतः तस्य नाममालां प्रतिपादयन्नाह भगवान् कुन्दकुन्दाचार्यः-( णाणी सिव परमेट्ठी ) ज्ञानी शानमनन्तकेवलज्ञान विद्यते यस्य स भवति ज्ञानी। शिवः परमकल्याणभूतः शिवति लोकाग्रे गच्छतीति शिवः । 'नाम्युपधप्रीकृगृज्ञां कः" । परमेष्ठी इन्द्रचन्द्रधरणेन्द्रवंदित पदे तिष्ठतीति परमेष्ठी । औणादिकोऽयं प्रयोगः । ( सव्वण्हू विण्हू चउमुहो बुद्धो) सर्व लोकालोकं जानाति वेत्तीति सर्वज्ञः । वेवेष्टि केवलज्ञानेन लोकालोक व्याप्नोतिति विष्णुः "विषेः किच्च" इत्यनेन युप्रत्ययः स च कित् कानुबन्धत्वान्न गुणः । चतुहै। पातिचतुष्क के नष्ट होने पर यह जीव लोक और अलोक को प्रकाशित करने लगता है अर्थात् जानने देखने लगता है ॥१४८॥
गाथार्थ-सम्यग्दर्शन के प्रभाव से यह संसारी जीव भी ज्ञानी, शिव, परमेष्ठी, सर्वज्ञ, विष्णु, चतुर्मुख, बुद्ध और परमात्मा हो जाता है तथा निश्चय-पूर्वक कर्मों से मुक्त हो जाता है ॥१४९।
विशेषार्व-सम्यग्दर्शनके प्रभावसे यह संसारी जीव सिद्ध हो जाता है, मात्र इतनी ही बात नहीं है किन्तु सर्वज्ञ आदि भी होता है, यह अपि शब्दका अर्थ है। वह सिद्ध कैसा होता है ? उसको नामावली का प्रतिपादन करते हुए श्री भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य कहते हैं-वह सिद्ध ज्ञानी है अर्थात् अनन्त-केवलज्ञानसे युक्त होनेके कारण ज्ञानी है। परम कल्याण भूत होनेसे शिव है अथवा 'शिवति लोकाग्रे गच्छंतीति शिवः' इस व्युत्पत्ति से लोकाग्र को प्राप्त होनेसे शिव है। शिव शब्द में 'नाभ्युपधप्रोकृगृज्ञां कः' इस सूत्र से क प्रत्यय हुआ है। इन्द्र चन्द्र तथा धरणेन्द्र से वन्दित परम पद-उत्कृष्ट पदमें स्थित होनेसे परमेष्ठो हैं। परमेष्ठी शब्द उणादि प्रकरण से सिद्ध होता है। समस्त लोकालोक को
१. पदार्थाश्यालोकः म००।
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