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-५. ९५] भावप्राभृतम्
४५९ मिथ्यात्वगुणस्थानं ( १ ) सासादनगुणस्थानं (२) मिश्रगुणस्थानं (३) अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानं (४) देशविरतगुणस्थान (५) प्रमत्तसंयतगुणपारिणामिक भाव कहते हैं । अब गुणस्थानों के संक्षिप्त स्वरूपका निदर्शन किया जाता है
१. मिथ्यादृष्टि-मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति तथा अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, इन सात प्रकृतियों के उदय से जिसको आत्मा में अतत्वश्रद्धान उत्पन्न रहता है उसे मिथ्यादृष्टि कहते हैं । इस जोवको न स्वपरका भेद-विज्ञान होता है. न जिन प्रणोत तत्वका श्रद्धान होता है और न आप्त, आगम तथा निर्ग्रन्थ गुरु पर विश्वास हो होता है।
२. सासादन सम्यग्दृष्टि-सम्यग्दर्शन के काल में एक समय से लेकर छह आवली तक का काल बाकी रहने पर अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ में से किसी एक का उदय आजानेके कारण जो चतुर्थ गुणस्थानसे नीचे आ पड़ता है परन्तु अभी मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में नहीं आ पाया है उसे सासादन गुणस्थान कहते हैं। इसका सम्यग्दर्शन अनन्तानुबन्धीका उदय आजानेके कारण सासादन अर्थात् विराधनासे सहित हो जाता है। .. ३. मित्र-सम्यग्दर्शन के कालमें यदि मिश्र अर्थात् सम्यमिथ्यात्व प्रकृति का उदय आ जाता है तो यह चतुर्थ गुणस्थान से गिरकर तीसरे मित्र गुणस्थान में आ जाता है । जिस प्रकार मिले हुए दही और गुड़का स्वाद मिश्रित होता है उसी प्रकार इस गुणस्थानवी जीवका परिणाम भी सम्यक्त्व और मिथ्यात्व से मिश्रित रहता है। अनादिमिथ्यादृष्टि जीव चतुर्थ गुणस्थान से गिर कर ही तृतीय गुणस्थान में आता है परन्तु सादि मिथ्यादृष्टि जीव प्रथम गुणस्थान से भी तृतीय गुणस्थान में पहुंच जाता है। ... ___४. असंयत सम्यग्दृष्टि-मिथ्यात्व, सम्यगमिथ्यात्व, सम्यक्त्व प्रकृति तथा अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, इन सात प्रकृतियोंके उपशमादि होनेपर जिसकी आत्मा में तत्व श्रद्धान तो प्रकट हुआ है परन्तु अप्रत्याख्यान-आवारणादि कषायों का उदय रहने से संयम भाव जागृत नहीं हुआ है उसे असंयत सम्यग्दृष्टि कहते हैं। . ५. देशविरत-अप्रत्याख्यानावरण कषाय का उदयाभावी क्षय और सदवस्था रूप उपशम प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय होनेपर जिसके
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