Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभृते
[५. ११९-- झायहि धम्म सुक्कं अट्टरउदं च साण मुत्तूण । रुद्दट्ट झाइयाई इमेण जीवेण चिरकालं ॥११९॥
ध्याय धम्यं शुक्लं आतं रौद्र च ध्यानं मुक्त्वा ।
आर्तरौद्रे ध्याते अनेन जीवेन चिरकालम् ॥ ११९ ॥ (झायहि धम्म सुक्कं ) ध्याय-एकाग्रेण चिन्तय । किं ? कर्मतापन्नं धर्म्य धर्मादनपेतं धयं । आज्ञापायविपाकसंस्थानलक्षणं चतुर्विधं धयं 'ध्यानमित्युमास्वामिसूचनात् । तथा श्रीगौतमस्वामिवचनाद्धयं ध्यानं दशविधं । तद्यथा। अपायविचयः १, उपायविचयः २, विपाकविचयः ३, विरागविचयः ४, लोकविचयः ५, भवविचयः ६, जीवविचयः ७, आज्ञाविचयः ८. संस्थानविचयः .९, संसारविचयश्चेति १० । तथा शुक्लध्यानं ध्याय पृथक्त्ववितर्कवीचारं १, एकत्ववितर्कावी
- गाथार्थ-इस जीवने आत्तध्यान तथा रौद्रध्यान चिरकाल से ध्याये हैं अब इन्हें छोड़कर धर्म्यध्यान और शुक्लध्यानका चिन्तवन । कर ॥११९||
विशेषार्थ-आत्तध्यान और रौद्रध्यान ये दोनों खोटे ध्यान हैं । यह जीव इनका चिरकाल से चिन्तवन करता आ रहा है । आचार्य कहते हैं कि मुने ! अब तू आत्तं और रौद्र इन दो ध्यानों को छोड़कर धर्म्यध्यान
और शुक्लध्यान का चिन्तवन कर। उमास्वामी के कहे अनुसार धर्म्यध्यान के आज्ञा-विचय, अपाय विचय, विपाक विचय और संस्थान विचय ये चार भेद हैं तथा गौतम स्वामी के कहे अनुसार धबध्यान के दश भेद हैं जैसे १ अपाय विचय, २ उपायविचय, ३ विपाकविचय, ४ विरागविचय, ५ लोकविचय, ६ भवविचय, ७ जीवविचय, ८ आज्ञाविचय, ९ संस्थानविचय और १० संसार विचय । इनका संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है-जीवकी वर्तमान में दुःख-पूर्ण अवस्था है, इसका विचार करना अपाय विचय है। इस दुःखसे बचने के उपाय सम्यग्दर्शनादिका चिन्तवन करना उपाय विचय है। किस कर्मके उदय से क्या फल मिलता है ऐसा विचार करना सो विपाकविचय है। रागी जीव सदा दुःख पाता है तथा राग से हो बन्ध होता है, आत्मा का स्वभाव रागसे रहित है, ऐसा चिन्तवन करना सो विराग विचय है। यह चौदह राजू प्रमाण लोक, जीवोंसे खचाखच भरा हुआ है इसमें एक भी स्थान ऐसा नहीं जहाँ में
१. "आज्ञापायविकसंस्थानविषयाय बम्य" इति सूत्रसूचनात् ।
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