Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-५.९६]
भावप्रामृतम् 'इत्यिविसयाहिलासो अंगविमोक्खो य पणिदरससेवा । संसत्तदव्वसेवा तहिदियालोयणं चेव ॥१॥ सक्कारपुररक्कारो अतीदसुमरणागदहिलासो ।
इट्ठविसयसेवा वि य नवभेदमिदं अबभं तु ॥२॥ इति नवभेदमवह तद्वर्जनां नवभेद ब्रह्मचयं ज्ञातव्यमित्यर्थः । ( अब्बंभं दसविहं पमोत्तूण ) अब्रह्मचर्य दशविधं प्रमुच्य परिहृत्य । किं तद्दशविधमब्रह्मेति चेत् ?
चिन्ता दिदृक्षा निःश्वासो ज्वरो दाहोरुचिस्तथा ।
मूर्धोन्मत्तोऽसुसन्देहो मरणं दशधा स्मरः ॥१॥ ( मेहुणसण्णासत्तो ) मैथुनस्य कमनीयकामित्या आलिङ्गनचुम्वनचूषणांदिसंज्ञायामासक्तो लंपटो हे जीव ! । ( भमिओसि भवण्णवे भीमे ) भ्रमितोऽसि भ्रान्तोऽसि पयंटिनोऽसिच्छेदनभेदनादिदुःखानि भुजानो भवार्णवे संसारसमुद्र चतुर्गतिलक्षणे भीमे भयानके रौद्रस्वभावे, अनन्तकालं दुःखी बभूविथेति ।
इथिविषया-१ स्त्री विषयक अभिलाषा करना, २ अङ्गका छोड़ना अर्थात् इन्द्रियको उत्तेजित करना लिंगको कड़ा करना, ३ गरिष्ठ रसका सेवन करना, ४ स्त्रियों से सम्बद्ध वस्त्रादिका सेवन करना, ५ स्त्रियोंके अंगोपांग आदिका देखना, ६ स्त्रियोंका सत्कार पुरस्कार करना, ७ पूर्वकालमें भोगे हुए भोगोंका स्मरण करना, ८ आगामी भोगोंकी इच्छा करना और ९ इष्ट विषयोंका. सेवन करना ये नौ प्रकारके ब्रह्मचर्य हैं। ___इस तरह नौ प्रकार के ब्रह्मचर्यका विवेचन करके अब दश प्रकारके अब्रह्मचर्यका वर्णन करते हैं।
चिन्ता-१ स्त्री विषयक चिन्ता करना, २ देखने की इच्छा रखना, ३ निःश्वास चलना, ४ ज्वर आना, ५ दाह पड़ना, ६ भोजनादि में अरुचि होना, ७ मूर्छा, ८ उन्मत ९ प्राण सन्देह और दशा मरण ये कामकी दश अवस्थाएं हैं । यही दश प्रकारका अब्रह्मचर्य है । हे जीव ! तू इसका त्याग कर नौ प्रकार के ब्रह्मचर्यको प्रकट कर । मैथुन संज्ञा में अर्थात् सुन्दर स्त्रियों के आलिंगतादि कार्यों में आसक्त होकर ही तू इस भयंकर संसार सागर में अनन्तकाल से भटकता चला आ रहा है ।।१६।।
१. भगवती आराधना ८७९, ८८० । २. भगवती आराधनायां 'अंगविमोक्खो' इत्यस्य स्थाने वच्छिविमोक्खो इति ' पाठो वर्तते 'वच्छिविमोक्खो' इत्यस्य 'मेहनविकारानिवारणम्' संस्कृत टीकायाम् ।
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