________________
-५. ९९ ]
भावप्राभृतम्
४७५
धूमदोषः ४ अथ किमर्थमाहारो गृह्यते इति चेत् ? आहारग्रहणे मुनीनां गुणाः
सन्ति । उक्तं च वीरनंदिभट्टारकेण
क्षुच्छान्त्यावश्यकप्राण-रक्षाधर्मयमा
मुनेः ।
वैयावृत्यं च षड्भुक्तेः कारणानीति यन्मतम् ॥ १ ॥ त्वतः शरीरसंवृद्धध तत्तेजोबलवृद्धये । स्वादार्थमायुसंवृद्धयं नैव भुंजीत संयतः ॥ २ ॥
महोपसर्गातङ्काङ्गसंन्यासाङ्गिदयातपोब्रह्मचर्याणि भिक्षोः षट्कारणान्यशनोज्झने ।। ३ ।।
एतद्दोषविहीनान्नभुक्तेरन्तरकारिणः ।
अन्तरायाः क्रियन्तोऽत्र वण्यंन्ते वणिनामिमे ॥ ४ ॥
रसपूयास्थिमांसासूक्चर्मामेव्यादिवीक्षणं ।
काकाद्यमेष्यपातोऽङ्गे वमनं स्वस्य रोधनं ॥ ५ ॥
प्रश्न - आहार किसलिये किया जाता है ?
उत्तर - आहार लेने में मुनियोंके अनेक गुण हैं— अनेक लाभ है । जैसा कि वीरनन्दिभट्टारक ने कहा है
सुत्छान्त्या ततः शरीर-क्षुधा की शान्ति, आवश्यकों का पालन, प्राणरक्षा, धम, चारित्र और वैयावृत्य ये छह मुनि के भोजन करनके कारण हैं। चूंकि यह सिद्धान्त है अतः साधुका शरीरको वृद्धि, उसक तेज और बलकी वृद्धि, स्वाद तथा आयुकी वृद्धि के लिये भोजन नहीं करना चाहिये ॥ १-२ ॥
महोपसर्ग - महोपसर्ग, भय, शरीरका संन्यास, जीवदया, अनशनादि तप और ब्रह्मचर्यं ये छह मुनिके भोजन छोड़ने के कारण हैं अर्थात् इन छह कारणोंसे मुनि आहार का परित्याग करते हैं ।। ३ ॥
एतद्दोष- इन दोषों से रहित आहार के उपभोग में बाधा करने वाले अन्तराय कितने हैं ? इस प्रश्न के समाधान के लिये अब यहाँ मुनियों के निम्नलिखित अन्तरायों का वर्णन किया जाता है ॥ ४ ॥
रसपूया - आहार करते समय गीले पीव हडडी मांस रक्त चमड़ा तथा विष्ठा आदि पदार्थ देखने में आ जावें, शरीर पर कौआ आदि पक्षी बीट कर दे अपने आपको वमन हो जावे, कोई आहार करने से रोक दे, दुःखके कारण अश्रु पात हो जावे, हाथ से ग्रास मिर जावे, कौआ आदि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org