Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-५.८५-८६] . भावप्राभृतम्
एएण कारणेण य तं अप्पां सद्दहेह तिविहेण । जेण य लहेह मोक्खं तं जाणिज्जह पयत्तेण ॥८५॥
एतेन कारणेन च तमात्मानं श्रद्धत्त त्रिविधेन ।
येन च लभध्वं मोक्षं तं जानीत प्रयत्नेन ॥८५॥ (एएण कारणेण य ) एतेन कारणेन आत्मनो मोक्षहेतुत्वेन । ( तं अप्पां सदहेह तिविहेण ) तमात्मानं श्रद्धत्त तत्र विपरीताभिनिवेशरहिता भवत यूयं त्रिविधेनं मनोवचनकाययोगप्रकारेण । ( जेण य लहेह मोक्खं ) येन च कारणेनास्मश्रद्धानहेतुना लभध्वं मोक्षं सवकर्मप्रक्षयलक्षणं मोक्षं प्राप्नुत यूयं । ( तं जाणिज्जह पयत्तेण ) तामात्मानं जानीत ज्ञानगुणेन भेदज्ञानेन बुध्यध्वं यूयं, प्रयत्नेन चारित्रगुणेनकलोलीभावतया तत्र तिष्ठत यूयं ।
मच्छो वि सालिसित्थो असुद्धभावो गओ महाणरयं । इय णा अप्पाणं भावह जिणभावणा णिच्चं ॥८६॥
मत्स्योपि शालिसिक्थोऽशुद्धभावो गतः महानरकम् । इति ज्ञात्वा आत्मानं भावय जिनभावनां नित्यम् ॥८६|| ( मच्छो वि सालिसित्थो ) मत्स्योपि मोनजातिरल्पजीवः तन्दुलसिक्थप्रमाणशरीरत्वान्नाम्ना शालिसिक्थः । ( असुद्धभावो गओ महानरयं ) अशुद्धभावः सन्
इस कारण उस आत्मा को ही मन वचन कायसे श्रद्धा करो तथा उसीको प्रयत्न पूर्वक जानो जिससे मोक्ष प्राप्त कर सको ।।८५॥
विशेषार्थ-आत्मा ही मोक्षका कारण है इसलिये विपरीत अभिनिवेश से रहित होकर उसी आत्मा की मन वचन कायसे श्रद्धा करो और प्रयत्न-पूर्वक अर्थात् चारित्र गुणके साथ एकलोलीभावको प्राप्त होकर उसी आत्मा को जानो, ज्ञान गुण अथवा भेद ज्ञानके द्वारा उसे समझो जिससे समस्त कर्म-क्षय रूप मोक्षको प्राप्त हो सको ॥८५॥ - गाथार्थ-अशुद्ध भावोंसे युक्त शालिसिक्थ मच्छ भी महा नरक गया यह जान कर निरन्तर आत्मा की भावना करो आत्मस्वरूप का चिन्तन करो क्योंकि यही जिन-भावना है अथवा जिन-सम्यक्त्व है ।।८६॥ . विशेषार्थ-राघवमच्छ के कान में एक छोटी अवगाहनाका मच्छ रहता है चावल के सीथके समान शरीरका प्रमाण होनेसे वह शालिमच्छ अथवा तण्डुल-मच्छ कहलाता है । वह यद्यपि राघवमच्छ के समान बाह्य हिंसा नहीं कर पाता है परन्तु भाव-हिंसाके कारण राघवमच्छके ही
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