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-५ ५१] भावनामृतम्
३६३ इति । असौ कुमारस्तत्कालोचितवेषो देवनिर्मितां शिविकामारुह्य भूरि भूत्या उच्चविपुलाचलशिखरे स्थितं मां महामुनिभिनिषेवितं समभ्यैत्य भक्त्या त्रिःपरीत्य यथाविधि प्रणम्य वर्णत्रयसमुत्पन्नभूयोभिविनेय विद्युच्चौरेण तत्पंचशतसेवकैश्च समं सुधर्मगणधरपा दमूले समचित्तः संयमं ग्रहीष्यति । द्वादशवर्षान्ते मयि मोक्षं गते सुधर्मा केवली भविष्यति जम्बूनामा श्रुतकेवली भविष्यति ततो द्वादशवर्षपर्यन्ते सुधर्मणि निर्वाणं गते जम्बूनाम्नः केवलज्ञानमुत्पत्स्यते । जम्बू नाम्नः शिष्यो भवो wmmmm वाला था। अथवा वह सर्य किसी उत्तम राजा को जीतने वाला होगा क्योंकि जिस प्रकार उत्तम राजा नित्योदय होता है-निरन्तर अभ्युदय से युक्त होता है उसी प्रकार सर्य भी नित्योदय प्रतिदिन उदित होनेवाला होता है। जिस प्रकार उत्तम राजा बुधाधीश-विद्वानों का स्वामी होता है। उसी प्रकार सूर्य भी बधाधीश-बुध नामक ग्रहका स्वामी था, जिस प्रकार उत्तम राजा अखण्ड विशुद्ध मण्डल अखंडित और विशुद्ध राष्ट्र के सहित होता है उसी प्रकार सूर्य भी निर्दोष मण्डल पूर्ण तथा निर्दोष परिधि से सहित था। जिस प्रकार उत्तम राजा प्रवृद्ध-अत्यन्त विस्तार से यक्त रहता है उसी प्रकार सर्य भी प्रवृद्ध-अत्यन्त वृद्ध होगा और जिस प्रकार उत्तम राजा पद्माह्लादीलक्ष्मीको हर्षित करने वाला होता है उसी प्रकार सूर्य भी पद्माह्लादीकमलों को हर्षित करने वाला होगा।
इस कुमार को संसार से विमुखता जान इसके कुटुम्बी जन, कुणिक महाराज को अठारह श्रेणियाँ तथा अनावृत देव सब मिलकर मङ्गल जलसे इसका अभिषेक करेंगे । अब वे अठारह श्रेणियाँ कौन हैं ? इसका उत्तर देते हैं-सेनापति, गणक, राज श्रेष्ठी, दण्डाधिकारी, मन्त्री, महत्तर, बलवत्तर, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण, हाथी, घोड़ा, रथ
और पियादा-ये चार चतुरङ्ग सेना, पुरोहित, अमात्य और महामात्य ये अठारह श्रेणियाँ हैं। . उस समय के योग्य वेष को धारण करनेवाला वह कुमार देव-निर्मित पालको में सवार होकर बड़ी विभूति के साथ उन्नत विपुलाचल की शिखर पर स्थित तथा बड़े बड़े मुनियों से सेवित मेरे सामने आवेगा, भक्तिपूर्वक तीन प्रदक्षिणाएं देकर विधिपूर्वक प्रणाम करेगा और त्रिवर्ण में उत्पन्न बहुत से शिष्यों विद्युच्चर चोर और उसके पांच सौ सेवकों के १. विनय म०।
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