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-५.७८]
भावप्रामृतम् विरतप्रमत्तसंयतेषु संभवति । रौद्रं अविरतदेशविरतेषु संभवति । आज्ञापायविपाक संस्थानविचयैषम्यध्यानमुत्पद्यते । तत्पूर्वविदो मुनेः श्रेण्यारोहणात्पूर्व भवति । श्रेष्योरपूर्वकरणायुपशान्तान्तानां प्रथमं शुक्लं भवति । क्षीणकषायस्य द्वितीयं शुक्लं । तृतीयं शुक्ल चतुर्थ च शुक्लं केवलिनां भवति । तत्र संयोगस्य तृतीयं चतुर्थमयोगस्येति । पृथक्त्ववितकवीचारं प्रथमं शुक्ल । एकत्ववितर्कावीचारं द्वितीयं शुक्लं । सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिनामकं तृतीयं शुक्लं । व्युपरतक्रियानिवर्तिनामधेयं चतुर्थ शुक्लं । तत्र पृथक्त्ववितर्कवीचारं त्रियोगस्य भवति मनोवाक्कायावष्टस्भरात्मप्रदेशपरिष्पन्दान् त्रीन् योगानवलम्ब्य अवष्टभ्यं उत्पद्यते इत्यर्थः । एकत्ववितर्कावीचारं त्रिषु योगेषु मध्ये एकस्य चलनद्वारेणात्मपरिस्पन्दे सति समुत्पद्यत इत्यर्थः । काययोगस्य केवलिनः सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति शुक्लं भवति । अत्र कायावष्टम्भेनैवात्मनश्चलनं । अयोगकेवलिनों व्युपरतक्रियानिवति शुक्लध्यानं यतोऽत्र स्वरूपसे सहित जो ध्यान है वह धय॑ध्यान है। आत्माके निर्मल परिणामों से जो उत्पन्न होता है वद शुक्लध्यान है। इनमें धर्म्यध्यान और शुक्लध्यान ये दो ध्यान मोक्षके कारण हैं और शेष दो आर्तध्यान तथा रौद्रध्यान संसार के कारण हैं।
आर्तध्यान के चार. भेद हैं-१. अमनोज्ञ-संप्रयोग, २. मनोजविप्रयोग, ३. वेदना चिन्तन और ४. निदान चिन्तन । अमनोज्ञ अर्थात् अनिष्ट पदार्थका संयोग होनेपर उसके वियोग के लिये बार बार विचार करना अमनोज्ञ-संप्रयोग नामका आतध्यान है। मनोज्ञ अर्थात् इष्ट पदार्थ का वियोग होनेपर उसके संयोगके लिये वार वार विचार करना मनोज्ञ विप्रयोग नामका आत्तध्यान है। रोगादि की वेदना होने पर वार वार उसीका चिन्तन करना वेदना-चिन्तन नामका आर्तध्यान है और आगामी भोगोंकी आकांक्षा करना निदान चिन्तन नामका आर्तध्यान है।
हिंसा'झूठ चोरी और विषय सामग्री (परिग्रह ) के संरक्षण से रौद्रध्यान होता है। इसके भी १. हिंसानन्द, २. मृषानन्द, ३. चौर्यानन्द और ४. विषय संरक्षणनन्द (परिग्रहानन्द ) के भेद से ४ भेद हैं । इनका स्वरूप नामसे ही स्पष्ट है।
आर्तध्यान, अविरत अर्थात् पहले से चौथे गुणस्थान तक देशविरत, और प्रमत्तविरत गुणस्थानों में होता है परन्तु निदान नामका आर्तध्यान प्रमत्तविरत गुणस्थान में नहीं होता। रौद्रध्यान, अविरत और देश-विरत अर्थात् पहले से पांचवें गुणस्थान तक होता है। आज्ञाविचय, अपाय
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