Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
-५.७८]
भावप्रामृतम् रूपतया चलनं वर्तते तथापि इदं ध्यान। कस्मात् ? एवंविधस्यैवास्य विवभितत्वात् । विजातीयानेकविकल्परहितस्य अर्थादिसंक्रमेण चिन्ताप्रबन्धस्यैव एतद्वचानत्वेनेष्टत्वात् । अथवा द्रव्यपर्यायात्मनो वस्तुन एकत्वात् सामान्यरूपतया व्यञ्जनस्य योगानां चैकीकरणादेकार्थचिन्तानिरोधोऽपि घटते । द्रव्यात्पर्यायं व्यञ्जनाव्यञ्जनान्तरं योगायोगान्तरं विहाय अन्यत्र चिन्तावृतो अनेकार्थता न द्रव्यादेः पर्यायादी प्रवृत्तौ । तथा श्रुतज्ञानेन एकार्थ वितर्कयन्नविचलितचित्तः प्रवृत्तः क्षीणकषाय एकत्ववितर्कवान् भवति । वाङमनोयोगं बादरकाययोगं च परिहाप्य सूक्ष्मकाययोगालम्बनोऽन्तर्मुहूर्तशेषायुर्वेद्यनामगोत्रः सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिभाग्भवति ।
ये दो ध्यान पूर्वोके पाठीके ही होते हैं। पहला शुक्लध्यान वितर्क और विचार से सहित है किन्तु दूसरा शुक्लध्यान विचार से रहित है।
प्रश्न-वीचार क्या है ? |
उत्तर-अर्थ, व्यञ्जन और योगोंको संक्रान्ति अर्थात् परिवर्तन को वीचार कहते हैं।
प्रश्न-अर्थ-संक्रान्ति क्या है ? . उत्तर-ध्यानस्थ जीव द्रव्य को छोड़कर पर्यायको प्राप्त होता है
और पर्यायको छोड़कर अर्थको प्राप्त होता है, इस तरह अर्थके परिवर्तनको अर्थ-संक्रान्ति कहते हैं ।।
प्रश्न-व्यञ्जन-संक्रान्ति क्या है ?
उत्तर-एक वचन को छोड़कर दूसरे वचनका आलम्बन लेता है और दूसरे को छोड़कर अन्य वचनका आलम्बन लेता है, इस तरह शब्दों के परिवर्तन को व्यञ्जन-संक्रान्ति कहते हैं।
प्रश्न-योग-संक्रान्ति क्या है ?
काय योगको छोड़कर अन्य योगको प्राप्त होता है और उसे छोड़कर काय योगको प्राप्त होता है, इस तरह योगोंके परिवर्तन को योग-संक्रान्ति कहते हैं। . इस प्रकार श्रुतज्ञान के द्वारा किसी द्रव्यका विचार कर उसकी पर्यायोंका विचार करता है और पर्यायोंका विचार कर द्रव्यका विचार करता है इस तरह द्रव्यके परिवर्तन होनेसे विचार होता है और विचारके रहते हुए पृथक्त्व अर्थात् भेदके द्वारा अर्थ और पर्याय का तथा शब्द और
१. यह कथन उत्कृष्टता की अपेक्षा है अन्यथा बारहवें गुणस्थान में जघन्य ज्ञान
अष्ट-प्रवचन मातृका नहीं सिख हो सकेगा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org