Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-५. ६८]
भावप्राभृतम् पत्ता) भावभ्रमणत्वं परिणामदिगम्बरत्वं न प्राप्ता, न कर्मक्षयलक्षणमोक्षनिरीक्षा बभूवुरिति पूर्वसम्बन्धः ।
जग्गो पावइ दुक्खं जग्गो संसारसायरे भमई । गग्गो ण लहइ बोहिं जिणभावणवज्जिओ सुइरं ॥६८॥ नग्नः प्राप्नोति दुःखं नग्नः संसारसागरे भ्रमति ।
नग्नो न लभते बोधिं जिनभावनावजितः सुचिरम् ॥६८।। ( नग्गो पावइ दुक्खं ) नग्नः पुमान् प्राप्नोति लभते, किं ? दुःखं छेदनभेदनशूलारोपणयंत्रपीलनक्रकत्रविदारणभ्राष्टक्षेपणतप्तलोहपुत्तलिकालिंगनवैतरणीनदीविशेषमज्जनकूटशाल्मलिघर्षणासिपत्रवनच्छायानिवेशन शारीरमानसागन्त्वसातं नरकेषु तिर्यक्षु कुमनुष्येषु कुदेवेषु च दुःख प्राप्नातीत्यभिप्रायः श्रीकुन्दकुन्दाचार्याणां (नग्नो संसारसायरे भमइ ) नग्नः संसारसागरे भ्राम्यति मज्जनोन्मज्जनं करोति । (नग्गो न लहइ बोहिं ) नग्नो जीवो वोधि रत्नत्रयप्राप्ति न लभते-अनन्तानन्तसंसारे पर्यटितोऽपि जन्मशतसहस्रकोटिभिरपि सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षकारणानि न प्राप्नोतीत्यर्थः । कथंभूतो नग्नः, ( जिणभावणवज्जिओ सुइरं)
प्राप्त नहीं होते। कहनेका तात्पर्य यह है कि भाव-शुद्धिके बिना मात्र नग्नता कार्यकारी नहीं है ॥६७॥
गाथार्य-जिनभावना-जिन सम्यक्त्वसे रहित नग्न पुरुष दुःख प्राप्त करता है । जिन-भावना से रहित नग्न पुरुष संसार सागर में भ्रमण करता है और जिन भावनासे रहित नग्न पुरुष चिरकाल तक रत्नत्रयको प्राप्त नहीं होता ॥६॥
विशेषार्थ-जिनभावना का अर्थ सम्यक्त्व है, उससे रहित नग्न पुरुष.नरक, तिर्यञ्च कुमनुष्य और कुदेवों में छेदा जाना, भेदा जाना, शूलीपर चढ़ाया जाना, कोल्हू में पेला जाना, करोंतसे विदारा जाना, भाड़में फेंका जाना, तपे लोहकी पुतलियोंसे लिपटाया जाना वैतरणी नामको विशेष नदीमें डुबाया जाना, विक्रियाकृत सेमरके वृक्षपर घसीटा जाना, असिपत्र वनकी छायामें बैठाया जाना, शारीरिक मानसिक तथा आगन्तुक आदि अनेक दुःखोंको प्राप्त होता है । जिनसम्यक्त्व से रहित नग्न मनुष्य संसार सागर में भ्रमण करता है अर्थात् मज्जन और उन्मज्जन करता है तथा जिन-सम्यक्त्व से रहित नग्न मनुष्य चिरकाल तक रत्नत्रयको प्राप्त नहीं होता है अर्थात् अनन्तानन्त संसारमें घूमता
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