Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभूते
[ ५.४५
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रचयित्वेति लज्जितस्तपो जग्राह सुलसा सगरं च । तत्श्रुत्वा कोपाग्निदोपितो निदानं चक्रे तपः फलेन सगरकुलं सर्वं जन्मान्तरे निर्मूलयिष्यामीति । ततोऽसौ मृत्वाऽसुरेन्द्रस्य प्रथममहिषानीके चतुःषष्ठिसहस्रासुरस्वामी बभूव । स महाकालासुरतामा निजदेवैर्वेष्टितो विभंगेन पूर्वाभवसम्बन्धं ज्ञात्वा पापी चेतसा मंत्रिणि तत्प्रभौ सगरे च प्ररूढवैरोऽपि तौ हन्तुमनिच्छन्नत्युग्रं पापं तयोरिच्छन् तदुपायं सहायांश्च संचिन्त्य स्थितः । मम महापापं भविष्यतीति नाचिन्तयत् घिग्मूढतां । तदभिप्राय साधनमिदमत्रान्यत्प्रकृतं । तथा हि अत्र भरते धवलदेशे स्वस्तिकावतिपुरे हरिवंशजो राजा विश्वावसुः । देवी श्रीमती पुत्रो वसुः । तत्रैव क्षीरकदम्बनामा सर्वशास्त्रज्ञो ब्राह्मणोऽध्यापकोत्तमः पूज्यो विख्यातश्च । तत्पुत्रः पर्वतो देशान्तरागतो नारदो विश्वावसुपुत्रो वसुश्च एते त्रयोऽपि विद्यानां पारं प्रापुः ।
कृत्रिम सामुद्रिक शास्त्र रचकर इसे व्यर्थ ही दूषित ठहरा दिया इसलिये लज्जित होकर इसने तप ग्रहण कर लिया और सुलसा ने राजा सगरको । यह सुनकर मधुपगल मुनिने क्रोध-रूपो अग्निसे प्रदीप्त हो निदान किया कि मैं तपके फल से अन्य जन्म में सगरके समस्त कुलको निर्मूल कर दूँगा, जड़से नष्ट कर दूँगा । तदनन्तर वह मरकर असुरेन्द्रकी प्रथम महिष सेना में चौंसठ हजार असुरोंका स्वामी हुआ। वह महाकाल नामक असुर अपने देवोंसे परिवृत हो विभंगावधि ज्ञानसे पूर्व भवका सब सम्बन्ध जान गया । वह पापी यद्यपि हृदयसे मन्त्री और उसके स्वामी राजा सगर पर अत्यधिक वेर धारण कर रहा था तथापि उन्हें मारना नहीं चाहता था । वह उनसे किसी भयंकर पापको कराना चाहता था इसलिये उसके योग्य उपाय और सहायकोंका विचार करता हुआ चुप रह गया । इस विचारसे मुझे महापाप लगेगा ऐसा उसने विचार नहीं किया। सो ठीक ही है क्योंकि मूढ़ता को धिक्कार है । अब आगे जो कथा लिखी जाती है वह इसी अभिप्राय को साधने वाली है ।
इस भरत क्षेत्रके धवल देश- सम्बन्धी स्वस्तिकावती नामक नगर में हरिवंशमें उत्पन्न हुआ राजा विश्ववसु रहता था । उसकी स्त्रीका नाम श्रीमती था और पुत्रका नाम वसु था । उसो नगरमें एक क्षीर-कदम्ब नामका ब्राह्मण रहता था जो सब शास्त्रोंका ज्ञाता था, अध्यापकों में श्रेष्ठ था, पूज्य था और अतिशय प्रसिद्ध था । क्षीर कदम्बकका पुत्र पर्वत, दूसरे देशसे आया हुआ नारद और राजा विश्ववसुका पुत्र वसु ये तीनों उसके पास पढ़कर विद्याओंके पारको प्राप्त हो चुके थे । उन तीनों
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