Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-५. ४६ ]
भावप्राभूतम्
३४१
विस्फुरद्वीक्षणाऽत्युग्रवीक्षणः प्रत्युत्थाय कृतान्ताकारस्तं निगरितुमुद्यतः । कृष्णस्तु मम वसनमिदमस्य ताडने शुद्धशिला भवत्विति जलार्द्र पीतवस्त्रं मुक्त्वा फटायां तं निष्ठुरं ताडयामास । तस्माद्वस्त्रपाताद्वज्रपातादपि दुर्घरात् पूर्वं पुण्योदयाच्च भीतः कालियारिः फणीन्द्रोऽदृश्यतां जगाम् । हरिर्यथेष्टं कमलानि गृहीत्वा शत्रोः समीपं प्रापयामास । तानि दृष्ट्वा कंसो निजशत्रु दृष्टवानिव नन्दगोपसमीपे मम शत्रुवर्तते इति निश्चिकाय । एकदा नन्दगोपालमादिष्टवान् मल्लयुद्धमीक्षितुं निजमल्ले: सहाऽऽगच्छेरिति । स च तत्सन्देशं श्रुत्वा कृष्णादिभिर्मल्लैः सह प्रविवेश । तत्र मत्तगणं वीतबन्धनं कृतान्ताकारं 'मदगन्धाकृष्टरुवद्भ्रमरसेवितं नियमच्युतराजकुमारवत् निरंकुशं दन्तमुशलाघातनिर्भिन्नसुधामन्दिरम् धावन्तं विलोक्य कश्चित् संमुखं प्रढोक्य दन्तमेकमुत्पाटय तेनैव तं ताडयामास । गजोऽपि भीतो दूरं जगाम । तद्दृष्ट्वा हरिभृशं तुष्टः सन्नुवाच ——-अनेन निमित्तेन कुटुम्बप्रकृटीकृतो जयोऽस्माकं भविष्य - तीति गोपान् समुत्साह्य कंससंसदं विवेश । वसुदेवोऽपि राजा कंसाभिप्राय विदित्वा निजसेनां सन्नाह्यं कत्र स्थितः बलभद्रोऽपि कृष्णेन सह रंगं प्रविष्ट इव दोदण्डास्फालनष्वनि कृत्वा समन्तात् परिभ्रमत् कंसविनाशेऽद्य तव समय इति समाख्य य निर्जगाम । तदा कंसादेशेन विष्णुविधेया गोपकुमाराः प्रदर्पवन्तः भुजानास्फाल्य
उसे बड़ी निष्ठुरता से पछाड़ने लगे । उनके उस पीताम्बर से जो कि वज्रपात से भी कहीं दुर्धर था तथा पूर्व पुण्य के उदय से भयभीत हुआ कालिया नाग नामक नागेन्द्र अदृश्यता को प्राप्त हो गया । कृष्ण ने इच्छानुसार कमल लाकर शत्रु के पास पहुँचा दिये। उन्हें देख कंस को ऐसा लगा मानो मैं अपना शत्रु ही देख रहा हूँ । उसने निश्चय कर लिया कि मेरा शत्रु नन्दगोप के समीप है ।
एक दिन कंस ने नन्दगोप को आदेश दिया कि तुम अपने मल्लों के साथ मल्ल युद्ध देखने के लिये आओ । नन्दगोप उस संदेश को सुनकर कृष्ण आदि मल्लों के साथ प्रविष्ट हुआ । उसी समय एक मदोन्मत्त हाथी जिसने बन्धन तोड़ दिया था, जिसका आकार यमराज के समान था, मद की गन्ध से खिचे एवं गुनगुनाते भ्रमर जिसकी सेवा कर रहे थे, जो नियम से च्युत राजकुमार के समान निरकुंश था और दन्त रूपी मुशलों के आघात से जिसने बड़े-बड़े मकान गिरा दिये थे, सामने से दौड़ता चला आ रहा था, उसे देख किसी ने सामने जाकर उसका एक दाँत उखाड़ लिया और उसी दाँत से उसे पीटना शुरू कर दिया
१. मन्द म० ।
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