Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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३५४ षट्प्राभूते
[-५. ५१ भव्यो जातः, इह भरतक्षेत्रे जम्बूनामान्त्यकेवली बभूवेति क्रियाकारकसम्बन्धः । शिवकुमारस्य कथा यथा-अथ श्रेणिकः श्रीवीरं विपुलगिरी समवस्थितं प्रणम्य श्रीगौतमस्वामिनं प्रत्याह-अथ भरतक्षेत्रे पश्चिमकेवलीकोभविष्यति भगवन्निति । ततः कथां यावन्निरूपयितु श्रीगौतम उद्यमं करोति स्म तस्मिन्नेवावसरे ब्रह्मकल्पाधीशो ब्रह्महृदयाह्वविमानजो विद्युन्मालीजाज्वल्यमानतेजोविराजमानमुकुटः स्वनाम्ना स्वदर्शनेन च प्रिया विद्युत्प्रभाविद्युद्वेगादिनिजदेवीभित आगत्य जिनं वन्दित्वा यथास्थानं स्थितः । तं दृष्ट्वा राजन् ! अनेन केवलज्योतिषः परिसमा
गौतम स्वामीने राजा श्रेणिक से कहा-राजन् ! इसी व्यक्ति के द्वारा केवल ज्ञान रूपी ज्योति की समाप्ति होगी। वह किस तरह ? यदि यह जानना चाहते हो तो कहता हूँ। आजसे सातवें दिन यह ब्रह्मेन्द्र स्वर्ग से आकर इस राजगृह नगर में अर्हदास सेठ की प्रिय भार्या जिनदासी के यहाँ हाथी, सरोवर, शालिवन, प्रज्वलित ज्वालाओं से युक्त निर्धूम अग्नि तथा देवकुमारों के द्वारा लाये गये जामुन के फल स्वप्न में दिखा कर जम्बू नामका महान् कान्तिमान्, अतिशय प्रसिद्ध और विनीत पुत्र होगा । अनावृत देव उसकी पूजा करेगा। तथा यौवन के प्रारम्भ में भी वह निर्विकार रहेगा। जब जम्बूस्वामी का यौवन काल रहेगा तभी श्री वर्धमान भट्टारक-भगवान् महावीर स्वामी पावापुर में मोक्ष प्राप्त करेंगे । उसी समय मुझे केवल ज्ञान उत्पन्न होगा । सुधमं गणधर के साथ ससार रूपी अग्नि से संतप्त भव्य प्राणियों को धर्मामृत रूप जलसे आह्लाद करते हुए हम इसी राजगृह नगरमें आकर इसी विपुलाचलपर स्थित होंगे। यह समाचार सुनकर चेलनी रानी का पुत्र कुणिक राजा समस्त परिवारके साथ आकर मेरी तथा सुधर्म गणधर की पूजा कर दान शील उपवास आदिक स्वर्ग और मोक्षके साधक धर्म को ग्रहण करेगा। कुणिक के साथ आया हुआ जम्बूकुमार भी वैराग्य को प्राप्त कर दीक्षा ग्रहण करनेके लिये उत्सुक होगा। उसके कुटुम्बके लोग उससे कहेंगे कि कुछ वर्षोंके व्यतीत हो जाने पर हम सब भी तुम्हारे साथ दीक्षा ग्रहण करेंगे। कुटुम्ब के लोगोंने जो कहा जम्बकुमार न तो उसे सहन करने के लिये समर्थ होगा और न निराकरण करने के लिये । अन्त में वह नगर में वापिस आवेगा। वहां उसे मोह उत्पन्न करनेके लिये कुटुम्बी जनोंके द्वारा सुखकारी बन्धन विवाह प्रारम्भ किया जावेगा। यथार्थ में बान्धव जन, कुटुम्ब परिवार कल्याणके बाधक हैं। अन्त में वह सागर दत्त और
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