Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-४. ४१] बोधप्राभृतम्
२०३ (मयरायदोसरहिओ) मदरहितो रागरहितो दोषरहितः । ( कषायमलवज्जिओ य सुविसुद्धो ) कषायाः क्रोधमानमायालोमाः, मला हास्यरत्यरति-शोकभयजुगुप्सास्त्रीपुन्नपुंसक-लक्षणा नोकषायास्तैर्वजितो रहितः, सुविशुद्धः शान्तमूर्तिः । ( चित्तपरिणामरहिदो ) मनो-व्यापार रहितः। ( केवलभावे मुणेयम्वो) क्षायिकभावे मुनितव्यो ( १ ) ज्ञातव्योऽर्हन्निति ॥४०॥
सम्मइंसणि पस्सइ जाणदि गाणेण दव्वपज्जाया। सम्मत्तगुणविसुद्धो भावो अरहस्स णायव्वो ॥४१॥ सम्यग्दर्शनेन पश्यति जानाति ज्ञानेन द्रव्यपर्यायान् ।
सम्यक्त्वगुणविशुद्धो भावः अर्हतः ज्ञातव्यः ।।११।। ( सम्मइंसणि पस्सइ ) सम्यग्दर्शनेन पश्यति सम्य निस्तुषतया दर्शनेन सत्तारूपलक्षणेन पश्यति वस्तुस्वरूपं गृह्णाति । ( जाणदि णाणेणे दव्यपज्जाया) जानाति ज्ञानेन केवलज्ञानेन विशेषगोचरेण साकाररूपेण सम्यग्जानाति द्रव्याणि जीवपुद्गलधर्माधर्मकालाकाशलक्षणानि । ( सम्मत्त गुणविसुद्धो) सम्यक्त्वगुणेन
विशेषार्थ-अरहन्त भगवान ज्ञान आदि आठ मदोंसे रहित हैं, ममता परिणाम रूप रागसे रहित हैं, क्षुधा तृष्णा आदि अठारह दोषोंसे रहित हैं, क्रोध मान माया लोभ रूप कषायों तथा हास्य रति अति शोक भये जुगुप्सा स्त्रीवेद पुरुषवेद नसक वेद रूप नो-कषायों से रहित हैं, अत्यन्त विशुद्ध-शान्तमूर्ति हैं, मनके व्यापार से रहित हैं और केवलज्ञान आदि क्षायिकभावोंसे युक्त हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥४०॥ .
गाथार्थ--जो केवलदर्शन के द्वारा समस्त द्रव्य और उनकी पर्यायों को अच्छी तरह देखता है, केवलज्ञान के द्वारा उन्हें भलीभांति जानता है, तथा सम्यक्त्व गुणसे विशुद्ध है । उस आत्माको हो अरहन्त का भावस्वरूप जानना चाहिये अथवा भाव निक्षेप की अपेक्षा वह आत्मा हो अरहन्त है, ऐसा जानना चाहिये ॥४६।।
विशेषार्थ-जो सत्ता मात्र रूप पदार्थ को ग्रहण करने वाले दर्शनकेवल दर्शन गुण के द्वारा निष्तुषरूपसे-निर्मल रूपसे वस्तु-स्वरूपको ग्रहण करता है, जो विशेषको ग्रहण करने वाले साकाररूप केवलज्ञान के द्वारा जोव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाश द्रव्यों को अच्छी तरह जानता है और क्षायिक सम्यग्दर्शन से जो विशुद्ध है-निर्मल है
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