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षट्नामृत सम्यक्त्वगुणविशुद्धा । ( पन्चज्जा एरिसा भणिया ) प्रव्रज्या दीक्षा ईदृशी भणिता प्रतिपादिता चतुर्विशतितमेन तीर्थकृतेति शेषः ।
जिणमग्गे पव्वजा छहसंघयणेसु भणिय णिग्गंथा। भावंति भव्वपुरिसा कम्मक्खयकारणे भणिया ॥५४॥ जिनमार्गे प्रव्रज्या षट्सहननेषु भणिता निम्रन्था।
भावयन्ति भव्यपुरुषाः कर्मक्षयकारणे भणिता || (जिणमग्गे पव्वज्जा ) जिनमार्गे आहेतशासने प्रव्रज्या दीक्षा । (छहसंघयणेसु) षटसंहननेषु वर्षभनाराचवजनाराचनाराचार्धनाराचकीलिकाप्राप्तासृपाटिकनामसु षट्सु संहननेषु । ( भणिय णिग्गंथा ) भणिता प्रतिपादिता श्रीन्द्रभूतिनामगणधरदेवेनेति शेषः । कथंभूता भणिता, -निग्रन्था यथाजातरूपधारिणी यतोऽस्मिन् क्षेत्रेऽन्त्यो निम्रन्थो वीराङ्गजो यो भविष्यति पंचमकालस्यान्ते स किलाप्राप्तासपाटिको संहननो भविष्यति तेन षष्ठेऽपि. संहनने निग्रन्थप्रव्रज्या ज्ञातव्या । ( भावंति भम्वपुरिसा) भावयन्ति मानयन्ति एतद्वचनं, के ? भव्यपुरुषा आसन्नभव्यजीवाः । ( कम्मक्खयकारणे भणिया ) पारम्पर्येण कर्मक्षयकारणे मोक्षप्राप्तिनिमित्त भणिता प्रतिपादिता।
से निर्मल होती है। तीनमूढता, छह अनायतन, शङ्कादि आठ दोष और आठमद इन पच्चीस दोषों से रहित होनेसे विशुद्ध है। चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी ने जिन दीक्षाका इस प्रकार स्वरूप बतलाया है ॥५३॥ . गाथार्थ-अरहन्त भगवान् के शासन में जिनदोक्षा छहों संहननों में कही गई है। जिन-दीक्षा निम्रन्थ है-परिग्रह-रहित है और कर्मक्षय के कारणों में कही गई है, ऐसा भव्य पुरुष चिन्तन करते हैं ॥५४॥
विशेषार्थ-जिन मार्ग-अरहन्त भगवान के शासन में जिनदीक्षा बर्षभनाराच, बजनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कोलक और असंप्राप्तासपाटिका इन छह संहननोंके धारक जीवोंके कही गई है। क्योंकि इस क्षेत्र में पञ्चम कालके अन्तमें जो वीराङ्गज नामका अन्तिम निर्ग्रन्थमुनि होगा वह असंप्राप्तासृपाटिका संहनन का धारो होगा इससे छठे संहनन में भो निर्गन्थ-दीक्षा होती है, यह जानना चाहिये । जिन दोक्षा निनन्य होती है समस्त परिग्रहों से रहित हातो है, तथा कर्मक्षय कारणों में कही गई है अर्थात् जिनदोक्षा परम्परा से मोक्ष प्राप्तिका निमित्त है, ऐसा निकट-भव्य जीव. मानते हैं ॥५४॥
१. निग्रन्था क० म०।
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