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षट्नाभृते - देवाण गुणविहूई इड्ढी माहप्प बहुविहं दट्ठ। ... होऊण होणदेवो पत्तो बहुमाणसं दुक्खं ॥१५॥ देवानां गुणविभूति ऋद्धि माहात्म्यं बहुविधं दृष्ट्वा ।
भूत्वा हीनदेवः प्राप्तो बहुमानसं दुःखम् ।।१५।। ( देवाण गुणविहूई ) देवानां गुणान्
अणिमा महिमा लघिमा गरिमान्तद्धनकामरूपित्वं ।
प्राप्तिकाम्यवशित्वेशित्वाप्रतिहततत्वमिति वैक्रियिकाः ॥१॥ इत्यार्योक्तलक्षणान गुणान दृष्ट्वा ( इड्ढी ) ऋद्धि. इंद्राणीप्रमुखपरिवार । उक्तं च
शची पद्मा शिवा श्यामा कालिन्दी सुलसा का। . भान्वाख्या दक्षिणेन्द्राणां विश्वेषामपि कीर्तिताः ॥१॥ उदीचां श्रीमती रामा सुसीमा च प्रभावती । जयसेना सुषेणा च सुमित्रा च वसुन्धरा ॥२॥
गाथार्थ हे जीव ! तूने हीन देव होकर दूसरे देवोंको गुण विभूति, ऋद्धि तथा बहुत प्रकारका माहात्म्य देखकर बहुत मानसिक दुख प्राप्त किया है ॥१५॥
विशेषार्थ-देवोंमें अनेक गुण होते हैं जैसे
अणिमा-अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, अन्तर्धान, कामरूपित्व, प्राप्तिकाम्य, वशित्व, ईशित्व और अप्रतिहतत्व ये देवोंके विक्रिया जन्य गुण हैं। इनके सिवाय देवों का जो इन्द्राणी आदिका प्रमुख परिवार है वह सब ऋद्धि कहलाता है । जैसा कि कहा गया है ।
शची-स्वर्गोंके इन्द्र दक्षिणेन्द्र तथा उत्तरेन्द्रके भेदोंमें विभाजित हैं। दक्षिणेन्द्रों की प्रमुख देवियां इस प्रकार हैं
शची पद्मा-शची, पद्मा, शिवा, श्यामा, कालिन्दी, सुलसा, अञ्जुका और भानु।
उत्तरेन्द्रोंको प्रमुख देवाङ्गनाएं इस प्रकार हैं
श्री उदीचां-श्रीमती, रामा, सुषोमा, प्रभावती, जयसेना, सुषेणा, सुमित्रा और वसुन्धरा।
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