Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभूते
[ ५.३३
चेत्कोपि निवारयति तदा निवारयितुं ददाति । इंगिनीमरणे निवारयितुमपि न ददाति । केवलिमरणं तीर्थंकरगणघरानगारकेवलिमरणं ज्ञातव्यं । एतन्मरणत्रयं सुमरणं हे जीव ! त्वं भावय ।
सो णत्थि दव्वसवणो परमाणुपमाणमेत्तओ जिलओ । जत्थ ण जाओ ण मओ तियलोयपमाणिओ सब्बो ॥३३॥
स नास्ति द्रव्यश्रमणः परमाणुप्रमाणमात्रो निलयः ।
यत्र न जातो न मृतस्त्रिलोकप्रमाणकः सर्वः ||३३||
( सो णत्थि ) स नास्ति न विद्यते । ( जिलओ ) गृहं स्थानं । कथंभूतो निलय:, ( परमाणुपमाणमेत्तओ ) परमाणु प्रमाणमात्रः अविभागी परमाणुर्यावन्तं प्रदेशं रुणद्धि तन्मात्रोऽपि निलयो नास्ति । स कः प्रदेशः । ( जत्थ ) यंत्र प्रदेशे । ( दव्वसवणो ) द्रव्यदिगम्बर: मिध्यादृष्टिस्तपस्वी । ( ण जाओ ) न जातो नीत्पन्न: । ( ण मओ) न मृतो न मरणं प्राप्तः । स निलयः कियान्, (तिलोमाणिओ ) त्रिभुवनेन मापित: । ( सन्चो ) समस्तोऽपि ।
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१६. इङ्गिनी मरण - इङ्गिनी मरण में दूसरे को भी निवारण नहीं करने देता ।
१७. केवल मरण - तीर्थंकर गणधर और अनगार - केवलियों का मरण केवल मरण जानना चाहिये। यह तीन प्रकारका मरण सुमरण है । हे जीव ! तु इन्हीं को भावना कर ||३२||
गाथार्थ - ऐसा परमाणु प्रमाण भी स्थान नहीं है जहाँ द्रव्य-लिङ्गी मुनि न उत्पन्न हुआ हो और न मरा हो । समूचा तीन लोक उसका स्थान है ||३३||
विशेषार्थ - द्रव्य लिङ्गी मुनिका मुनिपद मुक्तिका कारण नहीं है किन्तु संसारका ही कारण है, यह बताते हुए श्री कुन्दकुन्द स्वामी दरशाते हैं कि परमाणुके बराबर भी ऐसा स्थान नहीं है जहाँ द्रव्यलिङ्गी साधुमिथ्यादृष्टि तपस्वी न उत्पन्न हुआ हो और न मरणको प्राप्त हुआ हो, उसका स्थान तो समूचा तोन लोक है अर्थात् तीनों लोकोंमें ऐसा एक भी प्रदेश नहीं है जहाँ द्रव्यलिङ्गी मुनि न उत्पन्न हुआ हो और न मरा हो ॥ ३३ ॥
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