Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्नामृते
[५.४१'अन्तर्वान्तं वदनविवरे क्षुत्तृषातः प्रतीच्छन् . कर्मायत्तः सुचिरमुदरावस्करे वृद्धगृदया। निष्पन्दात्मा कृमिसहचरो जन्मनि क्लेशभीतो
मन्ये जन्मिन्नपि च मरणातन्निमित्ताद्विभेषि ॥१॥ सिसुकाले य अयाणे असुईममम्मि लोलिओसि तुमं । असुई असिया बहुसो मुणिवर बालत्तपत्तेण ॥४१॥
शिशुकाले च अज्ञाने अशुचिमध्ये लुठितोसि त्वम् ।
अशुचिः अशिता बहुशः मुनिवर ! बालत्वप्राप्तेन ॥४१॥ (सिसुकाले य अयाणे ) गर्भरूपकाले स्तनन्धयावसरेऽशाने निर्विवेके । ( असुईमजाम्मि लोलिओसि तुम ) अशुचिमध्ये गूथमध्ये लोलितो लुठितस्त्वं भवान् । (असुई असिया बहुसो ) अशुचिविष्टा अमेध्यमशिता भक्षिता बहुशोऽनेकवारान् । (मुणिवर बालतपत्तेण ) हे मुनिवर ! यतिवराणां शानिनां मध्ये श्रेष्ठ ! परम प्रशस्य बालत्वप्राप्तेन अव्यक्तबालत्वं गतेन । तथा चोक्त
भावार्थ-यह जीव मरणसे इसीलिये डरता है कि मरनेके बाद फिर जन्म धारण करना पड़ेगा और उसके भारी दुःख सहन करने पड़ेंगे ॥४०॥
गावार्य हे मुनिवर! तू ज्ञान-रहित शिशुकालमें विष्ठा आदि अपवित्र वस्तुओं के मध्य लेटा है तथा उसी बाल्य-अवस्था की प्राप्तिके कारण तूने अनेक बार अशुचि वस्तुका भक्षण किया है ॥४१॥
विशेषार्थ-बालककी स्तनन्धय-दूध पीनेके अवस्थाको शिशुकाल कहते हैं । उस समय इसे पवित्र तथा अपवित्रका कुछ भी ज्ञान नहीं रहता है । उस दशामें यदि बालक अशुचि करलेता है और माता पिता आदि इष्ट जन नहीं देख पाते हैं तो वह उसी अशुचि पदार्थसे लिप्त पड़ा रहता है इतना ही नहीं कदाचित् उस अशुचि का भक्षण भी करलेता है । हे मुनिवर ! हे यतियों-ज्ञानियोंमें श्रेष्ठ परम प्रशंसनीय! साधो ! बाल्यअवस्थाके प्रसङ्गसे यह सब तुमने किया है। अथवा बालत्व-मिथ्यादर्शन से.युक्त द्रव्य लिङ्गके प्राप्त होनेसे यह सब दशा तुमने भोगी है। जैसा कि कहा है
१. पालानुसासने गुणमास्य।
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