Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
षट्प्राभूते
इति श्रीपद्मनन्दिकुन्दकुन्दाचार्यवक्रग्रीवाचार्यैलाचार्यगृद्धपिच्छाचार्यनामपंचक विराजितेन श्रीसीमन्धरस्वामिज्ञान संबोधितभव्यजनेन श्री जिनचन्द्रसूरिभट्टारकपट्टाभरणभूतेन कलिकालसर्वज्ञेन विरचिते षट्प्राभृतग्रन्ये सर्वमुनिमण्लीमण्डितेन कलिकालगौतमस्वामिना श्रीमल्लिभूषणेन भट्टारकेणानुमतेन सकलविद्वज्जनसमाजसम्मानितेनोभयभाषा कविचक्रवर्तिना श्रीविद्यानन्दिगुर्वन्तेवासिना सूरिवरश्रीश्रुतसागरेण विरचिता बोघप्राभृतस्य टीका परिसमाप्ता ।
२४४
इस प्रकार श्री पद्मनन्दी, कुन्दकुन्दाचार्य, वक्रग्रीवाचार्य, एलाचार्य और गृद्धपिच्छाचार्य इन पाँच नामोंसे विराजित, श्रीसीमन्धर स्वामीके ज्ञानसे भव्यजनों को सम्बोधित करने वाले, श्रीजिनचन्द्र सूरि भट्टारक के पट्टके आभूषण, कलिकालसर्वज्ञ श्री कुन्दकुन्दके द्वारा विरचित षट्प्राभृत ग्रन्थ में समस्त मुनियों की मण्डली से सुशोभित, कलिकाल के गौतमस्वामी, श्रीमल्लिभूषण भट्टारकके द्वारा अनुमत, समस्त विद्वज्जनके समूहसे सन्मानित उभयभाषा के कवियों में श्रेष्ठ श्रीविद्यानन्द गुरुके शिष्य सूरिवर श्री श्रुतसागर के द्वारा विरचित, बोधप्राभृत की टीका समाप्त हुई ।
Jain Education International
[ ४. ६२
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org