Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभूते
मोपुच्छिक: श्वेत 'वासो द्राविडो यापनीयकः । निष्पिच्छश्चेति पञ्चैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः ॥१ ॥
मयूरपिच्छरा अपि न वन्दनीयाः संशयमिथ्यादृष्टित्वात् । तथा च बौद्धमते
आयतनलक्षणम्
૪૬
पञ्चेन्द्रियाणि शब्दाद्या विषयाः पञ्च मानसम् । धर्मायत्तनमेतापि द्वादशायतनानि च ॥१॥
धर्मायतनं शरीरम् ।
सिद्धं जस्स सदत्थं विसुद्धझाणस्स णाणजुत्तस्स । सिद्धायदणं सिद्धं मुणिवरवसहस्स मुणिदत्थं ॥७॥ सिद्धं यस्य सदर्थं विशुद्धध्यानस्य ज्ञानयुक्तस्य । सिद्धायतनं सिद्ध मुनिवरवृषभस्य ज्ञानार्थम् ||७||
( सिद्ध ं जस्स सदत्थं ) सिद्ध लब्धिमायातं यस्य मुनिवरवृषभस्य । कि सिद्धम् ? सदत्थं—निजात्म–स्वरूपम् । कथंभूतस्य ? ( विसुद्धझाणस्स गाण
[ ४.७
प्रश्न - जैनाभास कौन है ?
उत्तर - यद्यपि इन्हें पहले कह आये थे, तथापि फिर भी कहते हैंगोपुच्छिक - गोपुच्छिक, शेतवासस्, द्राविड, [यापनीयक और निष्पच्छ—ये पाँच जैनाभास कहे गये हैं ।
यद्यपि ये मयूरपिच्छ के धारक हैं तो भी संशय मिध्यादृष्टि होनेके कारण नमस्कार करनेके योग्य नहीं हैं। क्योंकि संशय मिथ्यादृष्टि होनेके कारण मिथ्यादृष्टि ही माने जाते हैं। बौद्धमत में आयतन का लक्षण इस प्रकार है
पञ्चेन्द्रियाणि – स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियां, शब्द आदि पाँच विषय, मन तथा धर्मायतन--शरीर ये बारह आयतन कहे जाते हैं ॥६॥
आयदणं — इत्यायतनस्वरूपं समाप्तम् ||७||
गाथार्थ - विशुद्धध्यान से सहित एवं केवलज्ञानसे युक्त जिस श्रेष्ठ मुनिके निजात्मस्वरूप सिद्ध हुआ है, अथवा जिन्होंने छहद्रव्य, साततत्व, नवपदार्थं अच्छी तरह जान लिये हैं उन्हें सिद्धायतन कहा है।
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विशेषार्थ - विशुद्धध्यान से सहित अर्थात् आतं और रौद्र इन दो ध्यानोंसे रहित और धर्म्यं तथा शुक्ल इन दो ध्यानों से सहित, एवं ज्ञानसे
१. श्वेतवासो म० ।
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