Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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१६२ षट्प्राभृते
[४. १४(निम्मिविया जंगमेण रूवेण ) स्थिररूपेण निर्मापिताः संसारान्त्यक्षणे निष्पादिता एकसमयेन त्रैलोक्यशिखरं प्राप्ता धर्मास्तिकायाभावात्परतो न गच्छन्ति । अजङ्गमेन रूपेण स्थिररूपेण तिष्ठन्ति निश्चयस्थिरप्रतिमाभिधानाः । ( सिद्धट्टाणम्मि ठिया ) सिद्धानां मुक्तात्मनां स्थाने त्रिभुवनाने तनुवातवलये स्थिताः मुक्तिशिलामीषदूनगव्यू तिमधो मुक्त्वा आकाशे निराधाराः स्थिताः (वोसरपडिमा धुवा सिद्धा) व्युत्सर्गप्रतिमाः कायोत्सर्गेण पद्मासनेन वा स्थिता ध्रुवाः शाश्वताः सिद्धाः प्रतिमा भवन्ति । तेऽपि वन्दनीया भवन्ति ॥१३॥ .. पडिमा--प्रतिमाधिकारस्तृतीयः समाप्तः ॥३॥ अब श्री कुन्दकुन्दाचार्य दो गाथाओं द्वारा दर्शनाधिकार कहते हैंदंसेइ मोक्खमग्गं सम्मत्तं संजमं सुधम्म च । णिग्गंथं णाणमयं जिणमग्गे दंसणं भणियं ॥१४॥ दर्शयति मोक्षमार्ग सम्यक्त्वं संयमं सुधर्म च । निर्ग्रन्थं ज्ञानमयं जिनमार्गे दर्शनं भणितम् ॥१४॥ ( दंसेइ मोक्खमग्गं ) दर्शयति प्रकटयति मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन-ज्ञान चारित्रलक्षणं यत्तदर्शनम् । "कृत्ययुटोऽन्यत्रापोति" वचनात् कर्तरि युट् प्रत्ययः । संसारावस्था के अन्तिम क्षणरूप उपादान से सिद्ध अवस्था को प्राप्त हुए हैं और एक समय में तीन लोक की शिखर को प्राप्त हुए हैं, धर्मास्तिकाय का अभाव होने से आगे नहीं जाते हैं किन्तु अजंगम-स्थिर रूपसे वहीं स्थिर हो जाते हैं । सिद्धस्थान-तीन लोकके ऊपर तनु वात-वलय में स्थित रहते हैं। सिद्धशिला को कुछ कम गव्यूति प्रमाण नीचे छोड़कर आकाश में निराधार स्थित हैं । व्युत्सर्गप्रतिमा रूप हैं-कायोत्सर्ग अथवा पद्मासनसे स्थित हैं क्योंकि मोक्ष जाने वालों के यही दो आसन निश्चित हैं । ध्रुव हैं-अपनी इस सिद्धत्व-पर्याय से ध्रुव हैं, शाश्वत हैं। पूर्व तथा इस गाथा में बताये हुए विशेषणों से युक्त सिद्ध परमेष्ठी सिद्ध प्रतिमायें हैं, इन्हीं को स्थिर प्रतिमा भी कहते हैं ॥१३॥ ____ इस प्रकार प्रतिमा नामक तृतीय अधिकार समाप्त हुआ ।।३।। ....गाथार्थ-जो सम्यक्त्व, संयम और सुधर्म रूप मोक्षमार्ग को दिखलाता है तथा स्वयं निर्ग्रन्थ-परिग्रह-रहित और ज्ञानमय है वह जिनमार्ग में दर्शन कहा गया है ॥ १४ ॥ ..
विशेषार्थ-जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप - मोक्षमार्ग को दिखलाता है वह दर्शन है। यहाँ "कृत्ययुटोऽन्यत्रापि"
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