Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्नाभते
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[४. २६स्पर्श-रसगन्धरूपशब्दलक्षणपंचविषयरहितानि यस्मिस्तीर्थे तत्तथोक्तस्तस्मिन् पंचेन्द्रियसंयते । पुनः कथंभूते तीर्थे ? निरपेक्षे बाह्यवस्तत्वपेक्षारहिते आकांक्षारहिते माया-मिथ्यानिदान शल्यत्रयाविवर्जिते । ( हाएउ मुणी तित्थे ) स्नातु स्नानं करोतु-अष्ट-कर्ममलकलङ्क-प्रक्षालनं करोतु-केवलज्ञानाद्यनन्त चतुष्टय संयुक्तो भवतु । कोऽसौ ? मुनिः प्रत्यक्षपरोक्षज्ञानसंयुक्तो महात्मा महानुभावो जीवः, तोर्थे शुद्धबुझेकस्वभावलक्षणे निजात्मस्वरूपे संसार-समुद्रतारणसमर्थे. तीर्थे स्नातु विशुद्धो भवतु । केन कृत्वा स्नातु ? ( दिक्खा-सिक्खा-सुव्हाणेण ) दीक्षा पंचमहाव्रत-पंचसमिति-पंचेन्द्रियरोघलोच-षडावश्यक-क्रियादयोऽष्टाविंशतिमूलगुणा उत्तमक्षमामर्दवार्जवसत्यशौचसंयम तपस्त्यागाकिचन्यब्रह्मचर्याणि दशलक्षिको धर्मोऽष्टादशशीलसहस्राणिचतुरशीतिलक्षगुणास्त्रयोदशविधं चारित्रं द्वादशविष तपश्चेति सकलसम्पूर्णदीक्षा भवति, स्त्रीप्रसङ्गवर्जनं द्वादशानुप्रेक्षाचिन्तनं शिक्षा जिननाथस्य, सुस्तानेन कर्मकिट्टिकरण किट्टिनिर्लोपनलक्षणेन स्नानेन स्नातु ॥२६॥
करना चाहिये अर्थात् अष्ट कर्म मल रूप कलङ्कका प्रक्षालन करना चाहिये अथवा केवलज्ञान आदि अनन्त चतुष्टय से संयुक्त होना चाहिये।
प्रश्न-किसके द्वारा स्नान करना चाहिये ? उत्तर-दीक्षा और शिक्षारूप उत्तम स्नान के द्वारा। प्रश्न-दीक्षा क्या है ?
उत्तर-पांचमहाव्रत, पाँचसमिति, पञ्चेन्द्रियरोध, लोच, तथा षडा. वश्यक क्रिया आदि अट्ठाइस मूलगुण, उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य और ब्रह्मचर्य ये दश धर्म, अठारह हजारशीलके भेद, चौरासीलाख गुण, तेरह प्रकारका चारित्र और बारह प्रकार का तप ये सब मिलकर दोक्षा कहलाती है। प्रश्न-शिक्षा क्या है ?
उत्तर-स्त्री प्रसङ्गका त्याग करना और अनित्य आदि बारह भावनाओंका चिन्तन करना जिनेन्द्रदेव को शिक्षा है।
प्रश्न-सुस्नान क्या है ? . उत्तर-जिसमें कर्म रूपी किट्टि-कालिमाका अभाव हो जाय ॥२६।।
१. किट्टिकर क० ।
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