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बोषप्राभृतम् अब सिद्धप्रतिमा का वर्णन करते हैंदसण अणतणाणं अणंतवोरिय अणंतसुक्खाय । सासयसुक्ख अदेहा मुक्का कम्मट्ठबंधेहिं ॥१२॥ दर्शनानन्तज्ञानं अनन्तवीर्या अनन्तसुखाश्च ।
शाश्वतसुखा अदेहा मुक्ताः कर्माष्टबन्धः ॥१२।। ( सण अणंत णाणं) दर्शनमनन्तं केवलदर्शनं सत्ताविलोकनमात्रलक्षणं । काकाक्षिगोलकन्यायेनानन्तशब्द उभयत्राभिसम्बन्धते । तेनानन्तज्ञानं वस्तु यथावत्स्वरूपग्राहक केवलज्ञानं लोकालोकव्यापकं द्वयम् । तद्योगाद्दर्शनानन्तज्ञानं अनन्तदर्शनमनन्तज्ञानं च सिद्धा भवन्ति । उक्तं चाशाघरेण महाकविना
सत्तालोचनमात्रमित्यपि निराकारं मतं दर्शनसाकारं च विशेषंगोचरमिति ज्ञानं प्रवादीच्छया । ते नेत्रे क्रमवतिनी सरजसां प्रादेशिके सर्वतः
स्फूर्जन्ती युगपत्पुनविरजसां युष्माकमङ्गातिगाः तथा च नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवतिना चोक्तम्
दसणपुव्वं गाणं छदुमत्थाणं ण दोणि उवओगा ।
जुगवं जम्हा केवलिणाहे जुगवं तु ते दो वि ॥१॥ गापार्य-जो अनन्त दर्शन तथा अनन्तज्ञान-रूप हैं, अनन्तवीर्य और अनन्त सुख से युक्त हैं, अविनाशी सुखसे सहित हैं शरीर-रहित हैं और आठ कर्मोके बन्धनसे छूट चुके हैं, ऐसे सिद्ध परमेष्ठी सिद्ध प्रतिमा हैं ॥१२॥
विशेषार्थ-वस्तुकी सत्तामात्रके अवलोकन को दर्शन कहते हैं । यहाँ अनन्त दर्शन से केवल दर्शनका ग्रहण होता है। काकाक्षिगोलकन्याय से अनन्त शब्दका दर्शन और ज्ञान दोनोंके साथ सम्बन्ध होता है इसलिये अनन्त दर्शन और अनन्त ज्ञान ये दोनों शब्द सिद्ध होते हैं। यहां अनन्त ज्ञानका अथं वस्तुके यथार्थ स्वरूप को ग्रहण करनेवाला केवलज्ञान है। केवलदर्शन और केवलज्ञान ये दोनों ही लोक तथा अलोक में व्यापक हैं । उन दोनों के साथ तादात्म्य सम्बन्ध होनेसे सिद्ध परमेष्ठी अनन्तज्ञान और अनन्त दर्शन रूप हैं । जैसा कि महाकवि आशाधर ने कहा है
सत्ता-जो सत्ता मात्रका अवलोकन करता है ऐसा दर्शन निराकारघटपटादिके विकल्प से रहित माना गया है और जो घटपटादि विशेषको १. हे सियाः (० टि)
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