Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभृते [२. १०-११सम्यक्त्वचरणशुद्धाः संयमचरणस्य यदि वा सुप्रसिद्धाः।
ज्ञानिनः अमूढदृष्टयः अचिरं प्राप्नुवन्ति निर्वाणम् ॥९॥ ( सम्मत्तचरण सुद्धा ) सम्यक्त्वचरणे सम्यक्त्वचारित्रे ये सूरयः शुखाः . सम्यक्त्वदोषरहिताः सम्यक्त्वगुणसहिताश्च भवन्ति । ( संजमचरणस्स जइ व सुपसिद्धा ) संयमचरणस्य यदि वा सुप्रसिद्धाः चारित्राचारे च सुप्रसिद्धाः सुष्ठु अतिशयेन प्रकर्षण सिद्धं चारित्रं येषां ते सुप्रसिद्धा सर्वलोक विदिता वा सम्यक्त्वपूर्वकचारित्रप्रतिपालका इत्यर्थः ( णाणी अमूढदिट्ठी ) ज्ञानिनोऽमूढ़दृष्टयश्च । (अचिरे पावंति णिव्वाणं ) अचिरे स्तोककाले निर्वाणं प्राप्नुवन्ति । अत्र चारित्रस्य मुख्यत्वेऽपि सम्यक्त्वज्ञानयोरपि सामग्रयमुक्तमिति भावः ॥९॥
वच्छल्लं विणएण य अणुकंपाए सुदाणदच्छाए। ... मग्गणगुणसंसणाए अवगृहण रक्खणाए य ॥१०॥ एएहिं लक्खणेहिं य लक्खिज्जइ अज्जवहिं भावेहिं । जीवो आराहतो जिणसम्मत्तं अमोहेण ॥११॥
वात्सल्यं विनयेन च अनुकम्पया सुदानदक्षया। मार्गगुणसंशनया उपगृहनं रक्षणेन च ॥१०॥ एतैः लक्षणः च लक्ष्यते आजवैः भावः ।
जीव आराधयन् जिनसम्यक्त्वममोहेन ॥११॥ चारित्र के धारक हैं, सम्यग्ज्ञानी हैं और अमूढदृष्टि हैं अर्थात् विवेकपूर्ण दृष्टिसे युक्त हैं, वे शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त होते हैं ॥९॥
विशेषार्थ-जो पुरुष ऊपर कहे हुए सम्यक्त्व के पच्चीस दोषोंसें रहित हैं तथा निःशङ्कित आदि आठ गुणों से सहित हैं। संयमाचरण अर्थात् चारित्राचार के विषयमें अतिशय प्रसिद्ध हैं अथवा सर्वलोकमें विख्यात हैं, सम्यग्दर्शन-पूर्वक चारित्रके पालन करने वाले हैं, ज्ञानी हैं अर्थात् स्वपर-भेद-विज्ञान से सहित हैं और अमूढदृष्टि हैं वे अल्प समय में निर्वाण को प्राप्त होते हैं । यद्यपि इस गाथामें चारित्र को मुख्यता बतलाई है तथापि सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानकी समग्रता भी प्रकट की गई है। मोक्ष प्राप्ति के लिये सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनोंकी अनिवार्यता आवश्यक है ॥९||
गाचार्य-अमोह-मोह रहित अथवा अमोघ यानी-सफल जन्मका धारक मनुष्य, वात्सल्य, विनय, उत्तमदान देनेमें समर्थ अनुकम्पा, मोक्ष.
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