Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-२. १७] चारित्रप्राभृतम्
७७ ( सम्मइंसण गस्सदि ) सम्यग्दर्शनेन सत्तावलोकन-रूपेण विशेषमकृत्वा । निराकाररूपेण पश्यति विलोकते । ( जाणदिणाणेण ) ज्ञानेन विशेषरूपेण साकाररूपेण ज्ञानेनात्मा जानाति । कान् पश्यति ? कान् जानाति ? (दव्व पज्जाया ) द्रव्याणि जीवपुद्गल-धर्माधर्मकालाकाशांस्तथा पर्यायांश्च । जीवस्य नरनारकादयः क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह, स्नेह पुण्यपापादयश्च पर्यायास्तान् पश्यति जानाति च । तथा पुद्गम्य द्वयणुकत्र्यणुकचतुरणुकपञ्चाणुकादिमहास्कन्धत्रैलोक्यपर्यन्ताः पर्यायास्तान् पश्यति जानाति च । धर्मस्य येन रूपेण जीवपुद्गलौ गति कुरुतस्तद्रूपाः पर्यायाः । तथाऽधर्मस्य पर्यायाः स्थितिरूपा जीवादीनां ज्ञातव्याः । कालस्य समयावलिप्रभृतयः पर्यायाः, उक्तञ्च
'आवलिअसंखसमया संखेज्जावलिहिं होइ उस्सासो। __ सत्तुस्सासा थोओ सत्तत्थोओ लवो भणिओ ॥१॥
विशेषार्थ-इस गाथामें सम्यग्दृष्टि मनुष्यके दर्शन, ज्ञान और चारित्र गुणके कार्योंका उल्लेख किया गया है । यह घट है, यह पट है, इस प्रकारकी विशेषता न करके निराकार रूपसे सत्ता मात्रके अवलोकन को दर्शन कहते हैं । यह घट है, यह पट है इस प्रकार की विशेषता को लिये हुए साकार सविकल्प रूपसे पदार्थको जानना ज्ञान है। सम्यग्दृष्टि मनुष्य अपने दर्शन और ज्ञान गुणके द्वारा जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाश इन द्रव्योंको तथा उनकी पर्यायोंको अच्छी तरह जानता है। जाव की नर नारकादिक तथा क्रोध मान माया लोभ मोह स्नेह पुण्य और पाप आदि पर्याय हैं। सम्यग्दृष्टि मनुष्य उन्हें सामान्य और विशेष रूपसे देखता तथा जानता है। द्वयणुक, त्र्यणुक और पञ्चाणक को आदि लेकर तीन लोकरूप महास्कन्ध-पर्यन्त अनेक पर्याय हैं सम्यग्दृष्टि उन सबको अच्छी तरह देखता और जानता है । धर्मद्रव्यके जिस रूपसे जीव और पुद्गल गमन करते हैं, वह धर्म द्रव्यकी पर्याय हैं, सम्यग्दष्टि उन्हें अच्छी तरह देखता और जानता है। जीव आदिक द्रव्योंका जो स्थिति रूप परिणमन है वह अधर्म द्रव्यकी पर्याय हैं । सम्यरदृष्टि जीव उन्हें अच्छी तरह जानता है । समय तथा आवलि आदि काल द्रव्यको पर्याय है । जैसा कि कहा गया है
आवलि-असंख्यात समयकी एक आलि हाती है, संख्यात आवलियोंका एक उच्छ्वास होता है, सात उच्छ्वासका एक स्तोक होता है,
१. जोवकाण्डे ५७३, ५७४ तमौ श्लोको ।
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