Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभृते
[ २. २६
करोतीत्यतिथिः यति स पूज्यो नव 'पुण्य - सप्तगुण - समन्वितेन श्रावकेण यस्मिन् शिक्षाव्रते तदतिथि - पूज्यं । ( चउत्थ सल्लेहणा अन्ते ) चतुथं शिक्षाव्रतमन्ते मरणकाले सल्लेखना कायकषायतनूकरणमिति तात्पर्यम् ॥ २५ ॥
एवं सावयधम्मं संजमचरणं उदेसियं सयलं । सुद्धं संजमचरणं जइधम्मं णिक्कलं बोच्छे ॥ २६ ॥
एवं श्रावकधर्मं संयमचरणं उपदेशितं सकलम् । शुद्धं संयमचरणं यतिधर्मं निष्कलं वक्ष्ये ॥ २६ ॥
( एवं सावयधम्मं संजमचरणं उदेसियं सयलं ) एवममुना प्रकारेण श्रावकधर्मलक्षणं संयमचरणं चारित्राचारः, उपदेशितं भवन्तः कुर्वन्त्विति प्रतिपादित, सकलं समग्रं परिपूर्णं, किंचिद् विशेषरूपं तु न प्रतिपादितमित्यर्थः । उक्तञ्च -
किया है परन्तु तत्वार्थ सूत्रकार उमास्वामी ने दिग्व्रत देशव्रत और अनर्थtus - व्रतको गुणव्रत माना है । प्रायः यही मान्यता उत्तरवर्ती आचार्योंने स्वीकृत की है। श्री कुन्दकुन्द स्वामी के मतानुसार चार शिक्षाव्रतोंके नाम इस प्रकार हैं - सामायिक - प्रोषधोपवास, अतिथि संविभाग और सल्लेखना । समन्तभद्र स्वामी ने देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास और वैयावृत्यको शिक्षाव्रत माना है । तथा उमास्वामी महाराज ने सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग परिमाण और अतिथि संविभागको शिक्षाव्रत कहा है । कुन्दकुन्द स्वामी ने देशव्रत का उल्लेख गुणव्रतों में किया है और कुन्दकुन्द स्वामीकी सल्लेखनाको शिक्षाव्रत सम्बन्धी मान्यता अन्य आचार्यों को सम्मत नहीं हुई क्योंकि सल्लेखना मरण काल
ही धारण की जा सकती है और शिक्षाव्रत सदा धारण करना पड़ता है । इस दृष्टि से अन्य आचार्योंने सल्लेखना का बारह व्रत के अतिरिक्त वर्णन किया है । इसके स्थान पर उमास्वामीने अतिथिसंविभाग को और समन्तभद्र स्वामी ने वैयावृत्यको शिक्षाव्रत स्वीकार किया है । वैयावृत्य शब्द अतिथि संविभागका ही विस्तृत रूप है । ]
गाथार्थ - इस प्रकार समस्त श्रावकधर्म-सम्बन्धी संयमाचरण चरित्राचारका कथन किया, अब शुद्ध और निष्कलङ्क मुनिधमं सम्बन्धी चारित्राचार का कथन करूंगा ॥ २६ ॥
१. नव गुण म० ।
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