Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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चारित्रप्राभूतम्
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“क्रोघलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीची भाषणं च पञ्च" ( विदियस्स भावणा ) द्वितीयस्य महाव्रतस्य भावनाः । ( ए पंचैव ) इमा: पंचभावनाः । ( होंति ) भवन्ति ||३२||
आगे आचर्यमहाव्रत की पाँच भावनाएँ कहते हैंसुण्णायारणिवासो विमोचितावास जं परोषं च । एसणसुद्धिसउत्तं साहम्मी संविसंवादो ॥३३॥
शून्यागारनिवासो विमोचितावासो यत् परोधं च । सधर्म समविसंवादः ॥३३॥
एषणाशुद्धिसहितं
( सुष्णायारनिवासो ) शून्यागारेषु गिरिगुहात रुकोटरादिषु निवासः क्रियते तथा सति अचौर्य व्रतभावना प्रथमा भवति । ( विमोचितावास ) उद्वसग्रामादिषु विमोचितावासेषु घाट्यादिभिरुद्वसेषु कृतेषु निवासः क्रियतेऽचर्यव्रतस्य भावना द्वितीया भवति । ( जं परोधं च ) परेषामुपरोधो न क्रियते भाटकाद्यधिकं 'स्वामिनोवत्वां स्वयं न निरुष्यतेऽचौयंव्रत -भावना तृतीया भवति परोपरोधस्याकरणमित्यर्थः ( एसणसुद्धिसं उत्तं) एषणाशुद्धिमंयुक्तं सहितं, आगमानुसारेण
-२.३४ ]
उमास्वामी भट्टारक ने भी कहा है
क्रोष — क्रोधत्याग, लोभत्याग, भयत्याग, हास्यत्याग, और अनुवीचीभाषण ये पाँच सत्यव्रत की भावनाएं हैं ॥ ३२ ॥
गाथार्थ - शून्यागार निवास, विमोचितावास, परोपरोधाकरण, एषणाशुद्धि सहितत्व और सधर्माविसंवाद ये पाँच अचीर्यं महाव्रत की भावनाएँ हैं ॥ ३३ ॥
विशेषार्थ - शून्यागार अर्थात् पर्वतों की गुफाओं और वृक्षों की कोटरों आदि में निवास करना अचौर्यंव्रत की पहली भावना है। जो गाँव राजाओं के आक्रमण आदिसे उजड़ हो जाते हैं - वहाँ के निवासी लोग अपना स्वामित्व छोड़ अन्यत्र चले जाते हैं उन्हें विमोचितावास कहते हैं, ऐसे आवासों में निवास करना अचौर्यमहाव्रत को दूसरी भावना है। परोपरोधाकरण ठहरते समय दूसरों को रुकावट नहीं करना, मालिक को अधिक भाड़ा आदि देकर स्वयं किसी स्थानको न घेरना यह अचौर्य महाव्रत की तीसरी भावना है एषणाशुद्धिसे सहित होना अर्थात् चरणानुयोग के अनुसार भिक्षा की शुद्धि रखना उसमें किसी प्रकार के दोष नहीं लगाना अचौर्यमहाव्रत को चौथो भावना है। और सहर्षमयोंके सम्मुख
१. स्वामिना म० ।
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