Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभूते
[ २. २२
यिकं । ( पोसह ) पर्वोपवासः । ( सचित ) सचित्तस्या भक्षणं, ( रायभत्ते य ) रात्रिभोजन परिहारो दिवा ब्रह्मचर्य, ( बंभ ) सर्वथा ब्रह्मचर्यं । ( आरंभ ) सेवाकृषिवाणिज्यादिपरिहारः । ( परिग्गह ) वस्त्रमात्रपरिग्रह स्वीकारः सुवर्णादिवर्जनं । ( अणुमण ) विवाहादिकर्मानुपदेशः । ( उद्दिट्ठ ) उदृष्टाहार परिहारः । ( देस विरदो य ) एवं सागार चारित्रम् ॥ २१ ॥
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पंचैवणुव्वयाइं गुणव्वयाइं हवंति तह तिष्णि । सिक्खावय चत्तारि संजमचरणं च सायारं ॥ २२ ॥ पञ्चैवाणुव्रतानि गुणव्रतानि भवन्ति तथा त्रीणि ॥ शिक्षाव्रतानि चत्वारि संयमचरणं च सागारं ।। २२ ।।
( पंचेवणुव्वयाइ ) पंचैवाणुव्रतानि भवन्ति । ( गुणव्वयाई हवंति तह तिष्णि ) गुणव्रतानि भवन्ति तथा त्रीणि । ( सिक्खावय चत्तारि ) शिक्षाव्रतानि
तीसरी सामायिक प्रतिमामें प्रतिदिन प्रातः मध्याह्न और सायंकाल : सामायिक करना चाहिये ।
चौथी प्रोषध प्रतिमा में प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशो को शक्तिअनुसार उपवास करना चाहिये ।
पाँचवीं सचित्त त्याग प्रतिमा में सचित वस्तुओं के भक्षणका त्याग होता है।
छठवीं रात्रिभक्ति-विरति प्रतिमामें रात्रिके समय भोजन करनेका त्याग करना अथवा दिनमें ब्रह्मचर्य की रक्षा करना आवश्यक है । सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमामें स्त्री मात्रका त्याग होता है ।
आठवीं आरम्भ-त्याग प्रतिमा में सेवा, कृषि तथा व्यापार आदिका परित्याग होता है ।
नौवीं परिग्रह त्याग प्रतिमा में वस्त्रमात्र परिग्रह रखा जाना है तथा सुवर्णादिक धातुका त्याग होता है।
दशवीं अनुमति त्याग प्रतिमा में विवाह आदि कार्यों को अनुमतिका त्याग होता है ।
ग्यारहवीं उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा में अपने उद्देश्य से बनाये हुए आहारका परित्याग होता है ।
इस प्रकार यह देशविरत अर्थात् सागार चारित्रका वर्णन है ॥ २१ ॥ गाथार्थ - - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ये बारहव्रत गृहस्थ के संयमाचरण हैं ॥ २२ ॥
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