Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभृते
[२. १२मोक्षमार्गः सग्रन्थो वस्त्रादिवेष्टितः कोऽपि मोक्षं न गच्छति इति मोक्षमार्गस्तवनेन सदृष्टिविचक्षणैर्ज्ञायते । ( अवगृहण ) उपगूहन बालाशक्त जन जनित दोषाच्छादनेन सदृष्टिविचक्षणैर्ज्ञायते ( रक्खणाए य ) मार्गाद्मश्यज्जनस्थितिकरणेन सद् दृष्टिविचक्षणयिते इति क्रियाकारकसम्बन्धः ।
उच्छाहभावणा संपसंससेवा कुदंसणे सद्धा। अण्णाणमोहमग्गे कुव्वंतो जहदि-'जिणसम्म ॥१२॥
उत्साहभावना संप्रशंसासेवाः कुदर्शने श्रद्धां ।
अज्ञानमोहमार्गे कुर्वन् जहाति जिनसम्यक्त्वम् ।।१२॥ (उच्छाहभावणा संपसंससेवा ) मिथ्यादृष्टिकथिताचारे योऽसावुत्साह उद्यमस्तं, संपसंस-सम्यङ्मनसा वचसा च प्रशंसनं स्तुतिवचनं, सेवा-मिथ्यादृष्टेः करादिना स्पर्शनं (कुदसणे सद्धा) मिथ्यादर्शने श्रद्धां रुचि । ( अण्णाणमोहमग्गे ) न विद्यते ज्ञानं येषां तेऽज्ञानास्तेषां मोघो निष्फलो मोहो वा संशयादि रूपं योऽसौ मार्गः
नहीं होता; इस प्रकार मोक्षमार्गकी स्तुति करना मार्गगुण-प्रशंसा है । बालक तथा असमर्थ मनुष्यों के द्वारा उत्पन्न दोषों को छिपाना उपग्रहन है, मार्गसे भ्रष्ट होते हए मनुष्योंका स्थितीकरण करना रक्षण है और सरल परिणामी होना आर्जव भाव है। इन वात्सल्य आदि लक्षणों से सम्यग्दृष्टि जीव को पहिचान होती है ।।१०-११॥ ..
गाथार्थ-जो मनुष्य मिथ्यात्वाचरण में उत्साह रखता है, उसीकी भावना करता है, मन वचन से उसकी प्रशंसा करता है, हाथ आदिसे मिथ्यादृष्टि की सेवा करता है, तथा अज्ञानी जोवोंके मोघ-निष्फल अथवा मोह-संशयादि-पूर्ण मार्गमें श्रद्धा करता है वह जिन-सम्यक्त्व को छोड़ देता है ।।१।।
विशेषार्थ-कौन जीव जिनसम्यक्त्व को छोड़ देता है इसका निरूपण करते हुए कहा गया है कि जो मिथ्यादृष्टि के कथित आचार में उत्साह अथवा उद्यम करता है, मन और वचन से उसकी स्तुति करता है, मिथ्यादृष्टि गुरु आदि की हाय आदि से सेवा करता है, मिथ्यादर्शन में रुचि रखता है, तथा ज्ञान-हीन जीवोंके मोघ अर्थात् निष्फल अथवा मोह अर्थात् संशयादिरूप मार्गमें श्रद्धा करता है, वह जिनसम्यक्त्व को
१. जिणमग्गं क० ।
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