Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-१.१९]
दर्शनप्राभृतम्
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तेन "दंसण-वय-सामाइय-पोसह सचित्त - रायभत्ते य" इति गाथाद्ध कथिताः श्रावकाः षड् जघन्याः कथ्यन्ते । " बंभारंभ परिग्गह" इति गाथापादोक्तास्त्रयः श्रावका मध्यमा उच्यन्ते । शेषौ द्वावुत्तमावुक्तौ जैनेषु जिनशासने । " अणुमणमुद्दि ट्ठदेसविरदो य" अनुमतादुद्दिष्टाद्विरतो देशविरतश्च कथ्यते - उत्कृष्टः श्रावकः उच्यते इति । ( अवरट्ठियाण तइयं ) अवरस्थितानामायिकाणां तृतीयं दर्शनम् ( चउत्थं पुण लिंगदंसणं णत्थि ) चतुर्थं पुनलिङ्गदर्शनं नास्ति । त्रीण्येव जिनशासने लिङ्गदर्शनानि प्रोक्तानि न न्यूनानि नाप्यधिकानीति शेषः ॥ १८ ॥
छद्दव्व णवपयत्था पंचत्थी सत्त तच्च णिद्दिट्ठा । सद्दहह ताण रूवं सो सद्दिट्ठी मुणेयब्वो ॥१९॥ षड् द्रव्याणि नव पदार्थाः पञ्चास्तिकायाः सप्त तत्त्वानि निर्दिष्टानि । श्रदधाति तेषां रूपं स सद्दृष्टिः मन्तव्यः || १९||
( छद्दव्व ) षड् द्रव्याणि जीव- पुद्गल - धर्माधर्म- कालाकाशाः षड् द्रव्याणि भवन्ति । वर्तमानकाले द्रवन्तीति द्रव्याणि भविष्यति काले द्रोष्यन्ति, अतीत
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लिङ्ग उत्कृष्ट श्रावकों का बतलाया गया है। दशम प्रतिमा के धारक अनुमतिविरत श्रावक एक धोती, एक चादर तथा कमण्डलु रखते हैं । एकादश प्रतिमा के धारक उद्दिष्टविरत श्रावकों के ऐलक और क्षुल्लक को अपेक्षा दो भेद हैं। ऐलक कौपीन, पिछी और कमण्डलु रखते हैं तथा क्षुल्लक एक छोटी चादर भी रखते हैं; इस तरह जिनागम में दूसरा लिङ्ग उत्कृष्ट श्रावकों का है । आर्यिकाएँ उपचार से सकलचारित्र की धारक कहलाती हैं । वे सोलह हाथ की एक सफेद धोती तथा पिछी रखती हैं। क्षुल्लिकाएं ग्यारहवीं प्रतिमा की धारक कहलाती हैं । वे सोलह हाथ की धोती के सिवाय एक चादर भी रखती हैं। इस प्रकार जिनागम में तीसरा लिङ्ग सकलचारित्र के द्वितीय भेद में स्थित आर्यिकाओं का होता है । न तो लिङ्गों के सिवाय जिनागम में चौथा लिङ्ग नहीं है—उसमें तीन हो लिङ्ग बतलाये हैं, होनाधिक नहीं ।
[ इस गाथा में श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने श्वेताम्बर साधुओं के उस लिङ्ग को जिनागम से असम्मत बताया है जिसमें परिग्रहत्याग महाव्रत की प्रतिज्ञा लेकर भी वस्त्र धारण किया जाता है ] ||१८||
गायार्थ - छह द्रव्य, नौ पदार्थ, पाँच अस्तिकाय ओर सात तत्त्व कहे गये हैं । उनके स्वरूप का जो श्रद्धान करता है उसे सम्यग्दृष्टि जानना चाहिये ॥ १९ ॥
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