Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-१. २८]
दर्शनप्राभृतम्
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४७
'कमपि वन्दे । ( ण हु सवणो णेव सावओ होइ ) गुणहीनः पुमान् न' श्रमणो दिगम्बरो भवति नैव श्रावको भवति देशव्रती च न भवति । 3 गुणवानेव मुनिवन्दनीय इति भाव ॥२७॥
वंदामि तवसमण्णा सोलं च गुणं च बंभचेरं च । सिद्धिगमणं च तेसिं सम्मत्तेग सुद्धभावेण ॥२८॥ वन्दे तपः समापन्नान् शीलं च गुणं च ब्रह्मचर्य च ।
सिद्धिगमनं च तेषां सम्यक्त्वेन शुद्धभावेन ॥२८॥ (वंदामि तवसमण्णा ) वन्देऽहं कुन्दकुन्दाचार्यः । कान् ? मुनीनित्युपस्कारः । कथंभूतान् मुनीन् ? ( तवसमण्णा ) तपः समापन्नान् । तथा तेसि तेषां मुनीनाम् (सीलं च ) पूर्वोत्त-मष्टादश-सहस्र-संख्यं शीलं च वन्दे । (गुणं च ) पूर्वोक्त चतुरशोतिलक्ष-संख्यं गुणं चाहं वन्दे । तथा तेषां मुनीनां (बंभचरं च ) पूर्वोक्तं नवविधं ब्रह्मचर्य च वन्दे । तथा तेषां मुनीमां (सिद्धिगमणं च ) आत्मोपलब्धिलक्षणं सिद्धिगमनं मुक्तिप्राप्ति वन्दे । केन कृत्वा वन्दे ? ( सम्मत्तेण ) सम्यक्त्वेन
के निमित्त होते हैं इसलिये पूजा का मुख्य अङ्ग जो संयम है उसे प्राप्त करना चाहिये। उत्कृष्ट संयम को प्रतिज्ञा लेकर उससे भ्रष्ट हुआ मनुष्य न मुनि कहलाता है और न श्रावक । वह तो सोधा असंयमी है, अतः असंयमी होनेसे वन्दना के योग्य नहीं है ] ॥२७॥
गाथार्थ-मैं उन मुनियों को नमस्कार करता हूँ जो तप से सहित हैं। साथ ही उनके शीलको, गुणको, ब्रह्मचर्य को और मुक्ति-प्राप्तिको
भी सम्यक्त्व तथा शुद्धभाव से वन्दना करता हूँ ॥२८॥ - विशेषार्थ-अनशन ऊनोदर आदि के भेदसे तपके बारह भेद हैं।
· शीलके अठारह हजार भेद होते हैं। गुणोंके चौरासी लाख भेद हैं और ... ब्रह्मचर्य नवगाढ़ की अपेक्षा नौ प्रकारका है । जो तप शील, गुण और
ब्रह्मचर्यसे सम्पन्न हैं उन मनियोंको में नमस्कार करता है। ऐसे मनि हो अपनी साधना से सिद्धि-कर्म-नोकर्म और भावकर्म से रहित स्वस्वरूप
१. किमपि क०। २. श्रवणो म०। ३. गुणवान् मुनि क०।
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