Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-१.३०] दर्शनप्राभृतम्
अथ कानि तानि कर्मक्षयकारणानि शुक्लध्यानहेतव इति प्रश्ने गाथामिमां चकार श्रीकुन्दकुन्दाचार्यः
णाणेण दंसणेण य तवेण चरियेण संजमगुणण । चउहि पि समाजोगे मोक्खो जिणसासणे दिट्ठो ॥३०॥
ज्ञानेन दर्शनेन च तपसा चारित्रेण संयमगुणेन ।
चतुर्णामपि समायोगे मोक्षो जिनशासने दृष्टः (दिष्टः ) ॥३०॥ (णाणेण ) ज्ञानेन । (दसणेण य ) दर्शनेन च ( तवेण ) तपसा । ( चरियेण ) चरितेन चारित्रेण । ( संजमगुणेण ) संयमगुणेन एतच्चतुष्टयं संयमगुण उच्यते । (चउहि पि समाजोगे ) चतुर्णामपि समायोगे सति एकत्र सामग्रथाम् ( मोक्खो जिणसासणे दिट्ठो) मोक्षो जिनशासने दृष्टः कथितः । समस्तेन मोक्षो भवति न तु व्यस्तेन । उक्तञ्च वीरनन्दिशिष्येण पद्मनन्दिना
• 'वनशिखिनि मृतोऽन्धः संचरन् वाढमहि-(घ्रि ) द्वितय-विकलमूर्तिर्वीक्षमाणोऽपि खञ्जः। अपि सनयनपादोश्रद्दधानश्च तस्माद् दृगवगमचरित्र: संयुतैरेव सिद्धिः ॥
अब आगे कर्मक्षय के कारण तथा शुक्लध्यान के हेतु क्या क्या है ? यह प्रश्न होने पर श्री कुन्दकुन्दाचार्य निम्नलिखित गाथा लिखते हैं ।
गाथार्थ-सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक्तप और सम्यक्चारित्र ये चारों संयमगुण कहलाते हैं। इन चारों के एकत्रित होने पर ही जिनशासन में मोक्ष कहा है ॥३०॥
विशेषार्थ-सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन सम्यकतप और सम्यक्चारित्र इन चारों के समायोग से ही जिन-शासन में मोक्ष की प्राप्ति बतलाई गई है। इन चारों के समायोग को संयम गुण कहा जाता है, अतः संक्षेप से संयम गुण के द्वारा मोश्न होता है, ऐसा भी कहा जा सकता है । ज्ञान, दर्शनादि मिलकर ही मोक्ष के मार्ग हैं, भिन्न भिन्न नहीं । जैसा कि श्री वोरनन्दो के शिष्य पद्मनन्दि मुनि ने कहा है
बनशिखिनि-अन्धा मनुष्य अच्छी तरह चलता हुआ, दोनों पैरों से रहित लंगड़ा मनुष्य देखता हुआ और 'यह अग्नि है' इस श्रद्धा से रहित मनुष्य नेत्र और पैरों से सहित होता हुआ भी चूँकि दावानल में जल कर
१. पपनन्दिपञ्चविंशतिकायाम् ।
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