Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभूते
[ १.२९
श्रद्धया रुचिरूपेण सम्यग्दर्शनेन वन्दे । न केवलं सम्मत्तेण वन्दे किन्तु ( सुद्धभावेण ) निर्मल परिणामेन अकुटिलतया निर्मायत्वेनेति तात्पर्यम् ॥२८॥
४८
चउसट्ठिचमरसहिओ चउतीसहि अइसएहिं संजुत्तो । अणुवरबहुतत्तहिओ कम्मक्खय कारणनिमित्तो ॥ २९ ॥
चतुःषष्टिचमरसहितः चतुस्त्रिंशद्भिरतिशयेः संयुक्तः । अनुचरबहुसत्त्वहितः कर्म्मक्ष्यकारणनिमित्ते ॥२९॥
( चउसट्ठिचमरसहिओ ) चतुःषष्टिचामरसहितस्तीर्थकर - परमदेवो भवति तं वन्दे इति विषमव्याख्या ज्ञातम्या ( चउतीसहि अइसएहि संजुत्तो ) चतुस्त्रिंशदतिशयैः संयुक्तस्तीर्थंकर-परमदेवो भवति, तं वन्दे । ( अणुवर बहुसत्तहिओ ) अनुचर - बहुसत्वहितः स्वामिना सह ये पृष्ठतो गच्छन्ति तेऽनुचराः सेवकाः तथा बहुसत्वा अपरेऽपि जीवास्तेभ्यो हितः स्वर्गमोक्षदायक इत्यर्थः । ( कम्मक्खयकारणनिमित्ते ) कर्मणां क्षयकारणं शुक्ल-ध्यानं तस्य निमित्ते प्राप्त्यर्थं वन्दे इति क्रियाकारकसम्बन्धः ।।२९।।
की उपलब्धि को प्राप्त होते हैं। यह स्वस्वरूपोपलब्धि ही जीवनका सर्वोपरिलक्ष्य है, इसे में श्रद्धापूर्वक शुद्धभावसे नमस्कार करता हूँ ||२८||
गाथार्थ - जो चौसठ चमरों से सहित हैं, चौतीस अतिशयोंसे युक्त हैं और विहार कालमें पीछे चलने वाले सेवक तथा अन्य अनेक जीवोंके हित करने वाले हैं उन तीर्थंकर परमदेव को मैं कर्मक्षय में कारणभूत शुक्लध्यानकी प्राप्ति के लिये नमस्कार करता हूँ ||२९||
विशेषार्थ -- तीर्थंकर भगवान 'चौसठ चमर रूप प्रातिहार्य से सहित होते हैं । दश जन्मके, दश केवलज्ञान के और चौदह देव रचित इस प्रकार चौतीस अतिशयों से युक्त होते हैं। साथ ही विहार कालमें पीछे चलने वाले सेवकों तथा अन्य अनेक जीवोंको स्वर्गं मोक्षके दायक हैं । उन तीर्थंकर भगवान को नमस्कार करनेमें उस शुक्लध्यान की प्राप्ति होती है जो कि कर्मक्षयका साक्षात् कारण है। उस शुक्लध्यानकी प्राप्ति के लिये ही मैं नमस्कार करता हूँ ॥ २९ ॥
१. भवनवासिनः २० व्यन्तराः १६ कल्पवासिनः २४ चन्द्री सूर्यो ४ इति चतुःषष्ठि ६४ ( क० टि० )
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