Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्नाभृते
- [१.३५फलिनमुद्यानं । सुपक्वकलमक्षेत्रं । रत्नद्वीपः । वज्र । मही । लक्ष्मीः । सरस्वती । सुरभिः । वृषभः । चूडारत्नं । महानिधिः । कल्पवल्ली। हिरण्यं । जम्बूवृक्षः । गरुडः । नक्षत्राणि । तारकाः । राजसदनं ग्रहाः । सिद्धार्थपादपः । अष्टप्रातिहार्याणि । अष्ट मङ्गलानि । एवमादीनि अष्टोत्तरशतं लक्षणानि । तिलक मसकादीनि नवशतव्यञ्जनानि तान्यपि लक्षणशब्देनोच्यन्ते ।
अथ के ते चतुस्त्रिशदतिशयाः ? निःस्वेदता, निर्मलता, क्षीरगौररुधिरता, समचतुरस्रसंस्थानं, वज्रवृषभनाराचसंहननं, सुरूपता, सुगन्धता; सुलक्षणता, . अनन्तवीर्य, प्रियहित-वादित्वम्, इत्येते दशातिशया जन्मन आरभ्य भवन्ति, तथा पातिकर्म-क्षयजा दशातिशयाः सन्ति, ते के ? गुव्यूतिशतचतुष्टय-सुभिक्षता, गगनगमनं, प्राणिवधाभाव, भुक्तेरभावः उपसर्गाभावः, चतुर्मुखत्वम् , सर्वविद्या प्रभुत्वम्, प्रतिबिम्ब-रहितत्वम्, लोचनपक्ष्मनिःस्पन्दः, नखकेशानामवृद्धिः, इति घातिकर्मक्षयजा दशातिशयाः, देवोपनीताश्चतुर्दशातिशयाः, तथाहि-सर्वार्धमागधीका भाषा, कोऽयमर्थः ? अर्द्ध भगवद्भाषा 'मगधदेशभाषात्मकं अर्द्ध च सर्वभाषात्मकं, कथमेवं
तारका, राजभवन, ग्रह, सिद्धार्थवृक्ष, अष्ट प्रातिहार्य तथा अष्ट मङ्गल द्रव्य इन्हें आदि लेकर एकसौ आठ लक्षण होते हैं और तिल, मसा आदि नौसी व्यञ्जन होते हैं। ये सब मिलकर एक हजार आठ लक्षण कहलाते हैं।
अब चौंतीस अतिशय कहते हैंपसीना नहीं आना, मलमूत्र रहित शरीर का होना, दूधके समान सफेद रुधिर, समचतुरस्रसस्थान, वज्रषभनाराचसंहनन, सुन्दररूप, सुगन्धता, उत्तम लक्षणों युक्तपना, अनन्त वीर्य और प्रिय तथा हितकारी वचन बोलना ये दश अतिशय जन्म से ही होते हैं। इनके सिवाय घाति कर्मोके क्षयसे होनेवाले निम्नलिखित दश अतिशय और होते हैं चारसौकोश तक सुभिक्ष रहना, आकाश में गमन होना, प्राणिवधका अभाव होना, कवलाहार का अभाव, उपसर्ग का न होना, चारों दिशाओंमें मुख दिखना, सब विद्याओं का स्वामीपना, छायाका नहीं पड़ना, नेत्रोंके पलक नहीं लगना, और नख तथा केशोंका नहीं बढ़ना; ये केवलज्ञान के दश अतिशय हैं । अब देवोपनीत चौदह अतिशय कहते हैं
सर्वार्थमागधी भाषाका होना। इसका अभिप्राय यह है कि दिव्यध्वनिमें अर्ध भाग तो भगवान् को भाषा है जो मगध देशकी भाषा स्वरूप
१. भमकामाक्या म०।
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