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न्यग्रोधिकाप्रसूतेन विहरता पुरवरे कुसुमनाम्नि । कौभीषणिना स्वातितनयेन वात्सीसुतेनाय॑म् ॥ ३॥ अर्हदवचनं सम्यग्गुरुक्रमेणागतं समुपधार्य । दुःखार्त च दुरागमविहतमति लोकमवलोक्य ॥४॥ इदमुच्चै गरवाचकेन सत्त्वानुकम्पया दृब्धम् । तत्त्वार्थाधिगमाख्यं स्पष्टमुमास्वातिना शास्त्रम् ॥ ५ ॥ यस्तत्त्वाधिगमाख्यं ज्ञास्यति च करिष्यते च तत्रोक्तम्। सोऽव्याबाधसुखाख्यं प्राप्स्यत्यचिरेण परमार्थम् ॥ ६ ॥ इसका सार इस प्रकार है
"जिनके दोक्षागुरु ग्यारह अंग के धारक 'घोषनन्दि' क्षमण थे और प्रगुरु वाचकमुख्य 'शिवश्री' थे; वाचना ( विद्याग्रहण ) की दृष्टि से जिसके गुरु 'मूल' नामक वाचकाचार्य और प्रगुरु महावाचक 'मुण्डपाद' थे; जो गोत्र से 'कौभीषणि' थे; जो 'स्वाति' पिता और 'वात्सी' माता के पुत्र थे; जिनका जन्म 'न्यग्रोधिका' में हआ था और जो 'उच्चनागर'१
१. 'उच्चै गर' शाखा का प्राकृत नाम 'उच्चानागर' मिलता है । यह शाखा किसी ग्राम या शहर के नाम पर प्रसिद्ध हुई होगी, यह तो स्पष्ट दीखता है। परन्तु यह ग्राम कौन-सा था, यह निश्चित करना कठिन है। भारत के अनेक भागों मे 'नगर' नाम के या अन्त मे 'नगर' शब्दवाले अनेक शहर तथा ग्राम है । 'बडनगर' गुजरात का पुराना तथा प्रसिद्ध नगर है। बड का अर्थ मोटा (विशाल) और मोटा का अर्थ कदाचित् ऊँचा भी होता है । लेकिन गुजरात में बडनगर नाम भी पूर्वदेश के उस अथवा उस जैसे नाम के शहर से लिया गया होगा, ऐसी भी विद्वानो की कल्पना है। इससे उच्चनागर शाखा का बडनगर के साथ ही सम्बन्ध है, यह जोर देकर नही कहा जा सकता । इसके अतिरिक्त जब उच्चनागर शाखा उत्पन्न हुई, उस काल मे बडनगर था या नही और था तो उसके साथ जैनो का कितना सम्बन्ध था, यह भी विचारणीय है। उच्चनागर शाखा के उद्भव के समय जैनाचार्यों का मुख्य विहार गंगा-यमुना की तरफ होने के प्रमाण मिलते है । अत. बड़नगर के साथ उच्चनागर शाखा के सम्बन्ध की कल्पना सबल नही रहती । इस विषय मे कनिघम का कहना है कि यह भौगोलिक नाम उत्तरपश्चिम प्रान्त के आधुनिक बुलन्दशहर के अन्तर्गत 'उच्चनगर' नाम के किले के साथ मेल खाता है।
-आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया रिपोर्ट, भाग १४, पृ० १४७ ।
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